पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४४ तुलसी की जीवन-भूमि . करेगा, वह काम इसी प्रेत को सौंपा गया। यह बात शायद उसी पुस्तक में लिखी है। वह पुस्तक भुटान राज्य में किसी ब्राह्मण के घर में पड़ी रही। बलरामपुर (गोंढा) के एक मुंशी जी उस बाधा जी के घर उसके बालकों को शिक्षा देने पर नियुक्त हुए। उन्हीं बालकों के वह पुस्तक देखाने पर उन्होंने धीरे धीरे कैथी में उसकी नकल उतार डाली। यह बात प्रगट होने पर जब वह ब्राह्मण महाक्रोधित हो कर उनका प्राण लेने पर उद्यत हुआ तब वे वहाँ से चम्पत हुए। उनसे वह पुस्तक वलरामपुर के किसी कर्मचारी को मिली। उनसे वह अलवर राज के गुरु स्वामी हंस-स्वरूप जी को मिली । और अब वह पुस्तक केसरिया (चम्पारन) निवासी वावू इन्द्रदेव नारायण के घर है। [श्री गोस्वामी तुलसीदास जी, पादटिप्पणी, पृ० ४२-३ ] फिर भी उक्त वावू साहब ने उसका पूरा प्राकटय न कर कैसा पुण्य कमाया, इसको स्वयं समझना चाहिए और देखना यह कि कहीं आज भी इसी परंपरा का पालन 'सोरों भी तो नहीं कर रहा है। उसकी प्राप्त सामग्री का इतिहास पूरा नहीं। अधूरा नहीं । परंतु जो है इसकी हरी छाया में आँख खोलने को पर्याप्त है। वाबू इंद्रदेव नारायण के 'तुलसी-चरित' के अंश मात्र के प्रकाशन से चरित्री धारा को बल मिला और उसने देख लिया कि जब इस सर्वथा गढंत चरित को इतना. मूल गोसाई-चरित महत्त्व मिल सकता है तब 'चरित्र का प्रियर्सनीकरण अवश्य ही सफल होगा और लोग तुलसीदास के इस परंपरागत जीवन को अवश्य पसंदू करेंगे। फलतः उसका निर्माण भी हो गया और वह मूल गोसाईं चरित' के रूप में यत्र-तत्र गोचर हो गया। उसका जो स्वागत आरंभ में हुआ आज नहीं है। फिर भी यह तो मानना ही होगा.