पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४८

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तुलसी की खोज २४५ कि उसका प्रणेता तुलसी का जानकार है । तथ्य की दृष्टि से कहा जा सकता है कि वस्तुतः वह भवानीदास के उक्त चरित्र का ही आधुनिक संक्षिप्त संस्करण है । संस्कार सन्-संवत् की दृष्टि से किया गया है, पर असावधानी के कारण कुछ भ्रांतियों का शिकार भी घन जाना पड़ा है। उसके संबंध में निवेदन इतना भर कर देना है कि उसको महत्व देने की आवश्यकता नहीं । हाँ, उससे अलग रह उस 'चरित्र' के परिशीलन की आवश्यकता अवश्य है जिसकी रचना भवानीदास ने की है और जो कभी कभी वैजनाथदास कृत भी कहा गया है। इसमें चमत्कार के पीछे जो इतिहास भरा है उसको पढ़ने का समय आ गया है न कि किसी महंत को कुछ गढंत करने का अवसर । निश्चय ही इस 'मूल गोसाई चरित' में जो सत्य है वह उक्त 'चरित्र' में भी है और जो असत्य है उसका मोह क्यों ? उसमें तुलसी का 'हित' कहाँ ? छाया फिर जिसकी हो। जी। तुलसी की खोज को अद्भुत रूप मिला श्री रामनरेश त्रिपाठी के 'मानस' से। उसकी टीका और टिमटिमाते दिये भूमिका का जैसा कुछ स्वागत हुआ उससे थाहत हो आपने अपना अभिमत दिया- जान पड़ता है, अभी हिंदी में ठोस काम करने वालों का समय नहीं आया है । साहित्य में एक अंध-सा चल रहा है, और साहित्य- पथ के पथिक अंधकार में उद्दिष्ट रास्ते की खोज करते हुए आकुल- व्याकुल की तरह चारों भोर दौड़ रहे हैं। उनके लिये मैं अपने कुछ छोटे-छोटे दिये रास्ते के किनारों पर टिमटिमाते हुए छोड़े जाता हूँ। संभव है, कभी उनकी दृष्टि इन पर पढ़े और वे इनको हाथ में लेकर साहित्य का.राज-मार्ग खोज निकालने में समर्थ हों। मेरी आन्तरिक