पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४९

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२४६ तुलसी की जीवन-भूमि कामना है, कि तुलसीदास को सांप्रदायिकता के घेरे से निकाल कर मनुष्य-मात्र के हाथों में पहुँचने दिया जाय। [ तुलसीदास और उनकी कविता, पहला भाग, प्रस्तावना पृष्ट ४-५] कहा ही नहीं। आपने स्वयं भी एक ऐसे दिये से काम भी लिया है। लिखते हैं- बहुत दिनों से मेरे मन में इस बात की शंका उठ रही थी कि संभव है, तुलसीदास का जन्म स्थान सूकरखेत हो हो । इससे वहाँ चल कर पता लगाना चाहिए । संयोग से विगत वर्ष टीकमगढ़ से 'बुन्देल भव' नाम की एक पुस्तक प्रकाशित हुई । उसमें भी 'वात' के आधार पर तुलसीदास का जन्म-स्थान सोरों प्रमाणित करने का प्रयत्न किया गया देख कर मेरी धारणा को और भी प्रोत्साहन मिला और मैं आक्टोबर, १९३५ के पहले सप्ताह में तुलसीदास की सीवनी की खोज में घर से निकल ही पड़ा । भिन्न-भिन्न स्थानों में होता हुमा ता० २१ आक्टोयर को मैं सोरों पहुंचा। [वही, पृष्ठ १३-४] 'सोरों में पहुँच कर श्रापने जो कुछ पढ़ा उसका परिणाम यह चकडोरि हुआ कि आप को लिन्नना पड़ा- चकडोरि- खेलत अवध खोरि गोली भँवरा चकडोरि । [गीतावली] ब्रज और उसके आसपास के जिलों में भौरा और चकटोरी खेलने का रिवाज है। लड़के बाजी लगा कर यह खेल खेलते हैं। पर अयोध्या, बनारस और राजापुर में इस खेल का प्रचार शायद ही है। सोरों में इसका वड़ा प्रचार है। इससे यह अनुमान किया जा सकता