पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५

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- तुलसी की नीयन-भूमि का वचपात होकर रहा होगा। और यह वह समय था जब बेगम नूरजहाँ क्या नहीं कर सकती थी ! निदान उक्त 'चरित्र' का वचन है- बेगम फरि अति शोध नुरत गज तरे देवायी। तात्पर्य यह कि जिले यहूदियों ने निकम्मा समझा वही कोने का पत्थर हुथा और फलतः यह 'गंग माफी की अवज्ञा कर्वाश्वर प्रसंग' डा. गुप्त जी की धारणा के सर्वथा विपरीत कितना सटीक सिद्ध हुआ ! इतना ही नहीं, ठीक इसी के बाद का 'पातसाह संबाद' तो और भी पते का निकला । देसिए, वहीं कहा जाता है- वादि सभै दिल्ली मुलताना । लागि जो लियौ हुतो बरदाना || १ || दरस हेत यायो मधु पायो । अति भेटा भादर सिह नायी ॥२॥ दीन बचन मृदु वानी भाली । यद संपदा विहित तिन राखी ॥३॥ नगर बनारस को चहिय, लिखि फागज पर दाम | अंगिफार प्रमु फीजिये, आपै दासन फाम ॥ १॥ फलो कि मैं तुम पै प्रथम, फही हुर्ता जो बात । सत्य सबै सोइ जानिये, यामें पाँच न सात ॥२॥ अर्ब खर्व लौ दव्य है, उदै अस्त लौ राज। तुलसी जो निजु मरन है, तो सब कोने काज ॥ ३ ॥ [चरित्र, पृष्ठ १२२ फिर भी आज तो बड़ी तत्परता से तुलसीदास राजापुर के माफीदार बताए जा रहे हैं। आगे आगे देखिए होता है क्या ? का अच्छा अवसर हाथ लगा है । तो भी इतना तो समझ रखिए कि इस 'चरित्र' के कथनानुसार-