पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५०

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! 5 तुलसी की खोज २४७ है कि तुलसीदास का जन्म ऐसे स्थान में हुआ था, जहाँ भौंरा और चकडोरी खेलने का बड़ा रिवाज था। [वही, पृष्ठ ६८] पाठक हैरान न हों। यह 'सोरों' का तर्क है। इसकी सत्यता से सिद्ध हुआ कि तुलसी ने जो 'खेलत अवध खोरि' में 'गोली भँवरा चकडोरि' का उल्लेख कर दिया सो ठीक नहीं हुआ। कारण कि अवध खोरि' में 'चकडोरि' का नाम कहाँ ? उसका वड़ा प्रचार तो सोरों में है न ? परंतु सोरों के दुर्भाग्य से तुलसी के अवतार रामप्रसाद के संबंध में इतना सटीक कहा गया है कि 'अवध' को इसका डर नहीं। ध्यान से पढ़ें और दिन के प्रकाश में खुली आँख से देखें यह कि अयोध्या के आस-पास इसका प्रचार कैसा है। कहते हैं- दस दस बरप वैस मन भाए । सुत साहन के सखा सोहाए ।। सबै सुभग सुंदर तन सोमा ! देखि देखि सब कर मन लोभा ॥ लाल लाल रामुनी जो पालहिं । अति विचित्र पिंजरन महँ घालहिं ।। चहै जो चित खेलहिं चकडोरी । बनी विचित्र बरंगन योरी ।। लगी सुरंग पाट मय डोरी। आवत जात बहोरि बहोरी ॥ चंचल सी चकई चलि नावै । फिरि फिरि कन करन महँ आपै ॥ जनु सरसिन ते अलिन उड़ाहीं । बरबस फिरि पंकन महँ जाहीं । [श्रीमहारानचरित्र, पृष्ठ १६] आशा है, इतने से ही श्री त्रिपाठी जी के 'टिमटिमाते दिये' का बोध हो गया होगा और पाठकों ने प्रत्यक्ष देख लिया होगा कि सोरों को तुलसी का जन्म - स्थान सिद्ध करने का प्रयत्न कितना ऊपरी, औंधाऔर भ्रामक है। पता नहीं पंडित रामनरेश त्रिपाठी जी को यह सूझ आ कहाँ से गई जो उन्होंने इस प्रकार का अनुसंधान