पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५१

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२४८ तुलसी की नीवन-भूमि कर डाला। हम उनकी आलोचना में क्यों उलझे जब हम भली- भाँति जानते हैं कि उनका अध्ययन यथार्थ नहीं । हाँ, भाषा के आधार पर जो लोग तुलसीके घर का पता लगाने निकलते हैं उनको पहले कुछ भाषा-शास्त्र का अध्ययन कर लेना चाहिए और फिर अपने यहाँ की भाषा- भाषा की पकड़ परंपरा को भली भाँति समझ कर तब इस क्षेत्र में पाँव रखना चाहिए । अन्यथा किसी भी कवि के किसी भी शब्द को अपने गाँव-घर में सुनकर उसकी व्याप्ति और जानकारी के अभाव में यह कह बैठना कितना आसान है कि अरे ! यह तो सचमुच यहीं का निवासी है जो इस शब्द का ऐसा व्यवहार कर रहा है। कौन नहीं जानता कि 'पूरव' में पश्चिम' की भाषा का वरावर व्यवहार रहा है और 'पच्छिम' के लोग घाहर से दवाव पड़ने पर 'पूरब' की ओर बराबर बढ़ते रहे हैं ? हाँ, अँगरेजी शासन भी इससे घरी नहीं रहा है । मार- वाड़ी कहाँ नहीं गया.? बंगाली कहीं गया भी तो वहाँ दस वीच नहीं वसा । उसके साथ उसका 'इष्ट' रहा और रही उसकी जीविका या नौकरी । तात्पर्य यह कि तुलसी को पश्चिम' के शब्द तो काव्य से मिल सकते हैं और मिल सकते हैं व्यवहार से भी; परंतु 'पूरव' के शब्द तो पश्चिम को सत्संग और वहाँ के निवास से ही मिल सकते हैं न ? फिर इस तथ्य की उपेक्षाक्यों ? 'पश्चिमी हिंदी के क्षेत्र के किसी कवि ने कभी 'पूर्वी हिंदी में कोई रचना की है ? सब का सार यह निकला कि अपने आस-पास के शब्द को तुलसी में देख कर उनको अपने आस-पास का समझ लेना ठीक नहीं। ठीक है पहले उस शब्द की व्याप्ति पर विचार करना और जान लेना उसके इतिहास को। और तब फिर यह देखना कि उसके प्रति कवि का लगाव क्या है। कवि के हृदय में उसका