पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५२

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तुलसी की खोज

२४६ वास व्यों है और क्यों वह उक्त अवसर पर उसका व्यवहार कर रहा है आदि घातों को जाने विना कोई भी प्राणी बुद्धि और विवेक की आँख से देखते हुए सहसा यह नहीं कह सकता कि अमुक स्थान पर यह शब्द बोला जाता है और यह शब्द अमुक कवि में पाया जाता है इसलिए अमुक कवि अमुक स्थान ही का है। इसके लिए उसे यह भी बताना ही होगा कि अमुक शब्द अमुक अर्थ में अमुक स्थान पर ही बोला जाता है और उस समय भी घोला जाता था जब अमुक आलोच्य कवि रचना में लीन था । अन्यथा उसकी उड़ान का कोई महत्त्व नहीं। भापा का पात्रगत प्रयोग तो और भी संकट में डाल देता है। इतने पर भी आप सचेत प्राणी के स्थान के विषय में कुछ कह सकते हैं न कि उसके जन्म स्थान के विषय में अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं। महाप्रभु वल्लभाचार्य के जन्म-स्थान का पता उनकी भाषा के आधार पर कौन बता सकता है और कौन बता सकता है उनके पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ के जन्मस्थान का पता उनके शब्दों को सूंघ कर ? निवेदन यह कि इस अत्यन्त कठिन और दुस्तर कार्य को इतना सस्ता और हल्का नहीं बना देना चाहिए। इसे पहुँचे हुए सिद्ध भापाशास्त्रियों के लिए ही छोड़ देना चाहिए। अन्यथा वहीं 'चकडोरि' की स्थिति होगी। देखिए न, उधर राजापुर के राम- बहोरी शुक्ल जी लिखते हैं- मुझे आश्चर्य है कि जिस व्यक्ति ने, स्वयं मुझ से मेरे मकान में, एक दूसरे काम के लिए पधारने पर संभवतः अक्टूबर सन् १९३६ में, राजापुर की चर्चा चलाने पर, कहा था कि मैं वहाँ नहीं गया, वह वहाँ के विषय में ऐसी बात कैसे कह सकता है। हम लोग वहाँ इस खेल को अपने लड़कपन में खेल चुके है, आज भी वहाँ लड़कों को खेलते देखते हैं। [वीणा, वैशाख १९६५, पृष्ठ ५४८ टिप्पणी]