पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५३

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अद्भुत तर्फ २५० तुलसी की जीवन-भूमि यह तो रही प्रत्यक्ष की स्थिति । आँख-देखी बात की यह गति तो परोक्ष की चर्चा ही क्या ? अनदेखी धात की दौड़ तो औरभी निराली है न? आप लिखते हैं- तोसे माय जायो को। [विनय-पत्रिका] 'तेरे जैसा माँ से उत्पन्न और कौन है ? यह शब्द बज और मार- वाड़ में शामतौर से प्रचलित है । पर राजापुर में यह इसी रूप में नहीं घोला जाता। [तुलसीदास और उनकी कविता, पहला भाग, पृष्ठ १०० ] श्री त्रिपाठी जी जो कुछ कहते हैं सत्य कहते हैं। मान लीजिए कि सचमुच राजापुर के लोग ऐसा नहीं बोलते। तो इससे हुआ क्या ? राजापुर की बोली में 'विनय-पत्रिका' की रचना हुई होती तो उसमें यह दोष निकाला जा सकता था। किंतु जब 'ब्रजभाषा' में उसकी रचना मानी जाती है तब उसमें किसी ठेठ राजापुरी शब्द का न आना कोई दोष कैसे हो गया जो आपने ऐसा लिख दिया ? सच तो यह है कि आप ने 'सोरों' और 'राजापुर' का वाद खड़ा कर सोरों को जिताने का बीड़ा उठा लिया है कुछ तुलसी में प्रवेश पाने का नहीं। क्यों? जी। 'स्वराज्य की बढ़ती हुई चेतना के साथ 'तुलसी' का नाता जो कुछ जुटा हो उससे अभी प्रयोजन सोरों की समझ क्या ? देखना तो अभी यह है कि वास्तव में यह राजापुर-सोरों-द्वन्द्व है कैसा ? सो सोरों के समर्थ संपादक श्री रामदत्त भारद्वाज का अमर्ष है-- )