पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५४

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. तुलसी की खोज सोरों-सामग्री के प्रति हिन्दी साहित्य सम्मेलन का व्यवहार नितान्त अनुचित और नागरी प्रचारिणी सभा काशी का अत्यन्त उपेक्षा- पूर्ण रहा है । 'सुलंसी चर्चा पर श्री रामनिधि शर्मा की जो आलोचना सम्मेलन-पत्रिका में छपी थी उससे अकारण पक्षपात स्पष्ट है। सम्मेलन को यह कहने में भानन्द माता रहा कि सोरों-सामग्री जाली है। यदि तर्क के लिये 'सम्मेलन' की बात पर विश्वास कर लिया जाय तब भी ऐसा साहित्य बच रहता है जिसका संबंध सोरों से तो नहीं, किंतु जो सोरों-मत की पुष्टि अवश्य करता है । सम्मेलन' कब तक गाली देगा? किस-किस को गाली देगा ? वह स्वयं थक कर बैठ जायगा । सत्य स्वयं प्रकाशित होता है। ब्लैक होल' जैसे मिथ्याडम्बर बन कर नष्ट हो जाते हैं। अनेक प्राचीन टीकाएँ हैं, जिनमें तुलसीदास के जीवन-चरित्र का उल्लेख किया गया है, उनले सोरों-मत की पुष्टि मिलती है। "वैष्णवों की वार्ताएं 'अष्टसखामृत', 'श्री गोसाई जी के सेवक चारि अष्टछापी तिनको वाता(१६९७ वि०) इन्हें भी यदि शूठा कहा जाय तो स्यात् राजापुर-मत को बल प्राप्त हो सके। किंतु १८५३ ई. में सर जार्ज ग्रियर्सन ने तुलसीदास पर जो 'नोट्स' छपवाए के उत्तरप्रदेश के पूर्वी जिलों की जनश्रुतियों के आधार पर थे। वे भी सोरों-मत की पुष्टि करते हैं और राजापुर संबंधी तथाकथित साहित्य के प्रतिकूल पड़ते हैं। विशेप विवरण के लिये देखिए मेरे लेख (1) तुलसी जन्मस्थान संबंधी सोरों सामग्री के अतिरिक्त अन्य साक्ष्य, ब्रजभारती २००९ । (२) माता हुलसी को जन्मस्थान : तारी (सरस्वती)। राजापुर का गजटियर और राजापुर-संबंधी वाजिवुल अर्ज की अर्ज भी सोरों के अनु- कूल पढ़ती है, और राजापुर के बड़े-बूढ़े का मत भी राजापुर के विपक्ष में है जैसा कि एडविन ग्रीज और शिवनन्दन सहाय लिख चुके हैं । अतः सोरों-सामग्री का प्रावल्य तो उसे गालियां देने से भी कम नहीं हो जाता। [नवीन भारत, २४ दिसंबर, १९५३]