पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. तुलसी की जीवन-भूमि गढंत ही थी । वास्तव में इस कपोल कल्पित कथा का प्रचार अँगरेजों की प्रतिहिंसात्मक मनोवृत्ति को उभाड़ने के लिए ही किया गया था। आधुनिक भारत, पृष्ठ ३४-५] 'अन्वेषण' होने दीजिए, फिर देखिए कि क्या सिद्ध हो कर रहता है। राजनीति से तो आप मुक्त हो गए । आप स्वतंत्र हैं। किंतु सच तो कहें, भाषा और भाव की दृष्टि से आप की स्थिति क्या है और सोच कर तो कहें, आज यह सोरों-राजापुर-द्वन्द्व क्या है। क्या कभी किसी कवि वा महात्मा ने भी इनका गुणगान किया है ? कलमी कागद चाहे जितने बनें परं वस्तुतः वस्तु-स्थिति यही है । राजापुर' का प्रमाण 'सोरों के पक्ष में है पर 'सोरों' को तुलसीदास का पता नहीं । यदि है तो सरकारी सनद सामने क्यों नहीं आती? सोरों के किस पुराने सरकारी कागद में वहाँ तुलसीदास का घर-थार अंकित है और उसका आधार क्या है ? यदि सोरों-सामग्री सच्ची है तो अँगरेजी सरकार सञ्ची नहीं। उसने क्यों नहीं 'गजेटियर में उसे अंकित किया । सोरों के गजेटियर को तुलसीदास का पता नहीं ? नंददास का पता नहीं; परंतु सोरों- सामग्री को किस वात का पता नहीं ? सभी कुछ तो यहाँ कविता और कागद के टुकड़े से झट सिद्ध हो जाता है न ? निश्चय ही सरकारी.सोरों के सर्वथा विपरीत है यह कविताई सोरों।. सोरों और राजापुर का द्वन्द्व बताता है कि अँगरेज सफल रहा तुलसी की शक्ति को क्षीण करने में । 'नागरी भाषा' का नाम मिटाया गया जिस नीति से उसी नीति से सरकारी नीति मिटाया गया तुलसी का जन्म-स्थान भी। आज हम उसे खोज सकते हैं पर पा नहीं सकते, मूंड चाहे जितना मारें! हम लक्ष्यभ्रष्ट जो हो गए हैं । फिर