पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५८

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तुलसी की खोज भी तुलसी तुलसी है। उसकी रामनीति को राजनीति, का भय नहीं। और उसके राम का उद्घोष है- जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि । उचर दिसि बह सरऊ पावनि । वही 'सरयू' जिसको आप 'घाघरा' के सामने भूल चुके हैं। देखिए न, अवधवासी, तुलसीभक्त, लाला सीताराम जी लिखते हैं- भक्तलोग सरयू को मानस-नन्दिनी और वसिष्ठ-कन्या कहते हैं । मानस-नन्दिनी से यह अभिप्राय है कि यह नदी मानस सरोवर से निकली है और वसिष्ठ-नन्दिनी का अर्थ यह है कि महर्षि वसिष्ठ जी को तपस्या से इसका प्रादुर्भाव हुआ है। वसिष्ठ सूर्य-वंश गुरु के थे। इस कारण वसिष्ठ-कन्या की महिमा भगीरथ-कन्या ( गंगा) से बढ़ शिक्षा की सरयू [अयोध्या का इतिहास, पृष्ठ १०] यह तुलसी की 'सरयू' का वर्णन रहा । अब सरकारी शिक्षा की सरयू का पाठ पदिए- अवध प्रांत में यह नदी नेपाल से निकल कर बहराइच में आती है। अल्मोड़े में इसे सरयू हो कहते हैं। बहराइच तीस कोस बह कर कौडियाला से मिल जाती है। परन्तु इस बात का प्रमाण मिला है कि सरयू पहिले कौड़ियाला से भिन्न धारा में बहती हुई धाधरा में गिरती थी। कहते हैं कि एक अंगरेज ने जो लट्ठों का व्यापार करता था, सरयू की धारा को टेढ़ी मेढ़ी देखकर उसे कौड़ियाला में मिला दिया। पुरानी धारा अब भी छोटी सरयू के नाम से प्रसिद्ध है और बहराइच से एक मील हटकर बहती है और बहराइच से निकल कर गोंडा जिले में घाघरा में गिरती है। इस संगम का वर्णन आगे किया जायगा। [वही, पृ० ११]