पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५९

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1 . सच्ची सरयू २५६ तुलसी की जीवन-भूमि आगे की बात यहीं सामने आ जाय तो अच्छा । सो यही संगम तुलसी का, 'कथा सो सूकरखेत' का संगम है, स्थान है। यही आगे की बात है । और सामने की यह कि- सरयू-धाघरा के संगम के बाद यह नदी घाघरा ही के नाम से प्रसिद्ध है; केवल अयोध्या में इसे सरयू कहते हैं। [ वही, पृष्ठ ११] किंतु वात ऐसी है नहीं। सरयू का नाम गंगा में मिल कर लुप्त होता है और 'सरजू' तथा 'देवहा' या 'देहवा' के रूप में आज भी साधारण जन-समाज में यह ख्यात है। स्कूली लोग ही इसको धाघरा' के नाम से जानते हैं। देवस्वामी की साखी है सर्वथा इसी के पक्ष में । लीजिए- उत्तर मानस सर से निसरी श्रुति सीता ते सरजू नाम । परम अवधि परमारथ से मिलि गंग भक्ति में भा विश्राम ।। रस रस रामरूप सागर से मिलि के जुदो रही तेहि ठाम । देवदृष्टि से यह रहस्य लखि ज्ञानमान तजि भजु सियराम ॥६॥ [अयोध्यात्रिंदु, पृष्ठ २] और स्वयं गोस्वामी तुलसीदास का भी तो प्रमाण है- अस मानस मानसं चष चाही ! भइ कवि बुद्धि विमल अवगाही । भयेउ हृदय आनंद उछाहू । उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू । चली सुभग कविता सरिता सो । राम बिमल जस जल भरिता सो। सरजू नाम सुमंगल मूला । लोक वेद मत मंजुल कूला। नदी पुनीत सुमानस नंदिनि । कलि मल तिन तरु मूल निकंदिनि । श्रोता त्रिविध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल। संत सभा अनुपम अवध सफल सुमंगल मूल ॥ ३९ ॥