पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२६०

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तुलसी की खोज २५७ रामभगति सुरसरितहि जाई । मिली सुकीरति सरजु सुहाई। सानुज राम समर जनु पावन । मिलेउ महानदु सोन मुहावन । सुग विच भगति देवधुनि धारा । सोहति सहित सुबिरति विचारा। विविध ताप प्रासफ तिमुहानी । राम सरूप सिंधु समुहानी। मानस मूल मिली नुरसरिही । सुनत सुजन मन पावन करिही । [रामचरितमानस, प्रथम सोपान ] फिर यदि 'संगम' के आगे 'सरयू' का नाम नहीं चलता है और केवल 'श्रयोध्या' में ही इसे 'सरयू' कहते हैं का प्रचार किया जाता है तो इसमें दोप किसका? अँगरेजी नाम का महत्त्व व्यापार के लिए 'सरयू' की धारा बदली गई, संगम का महत्त्व घटा, और न जाने क्या क्या और हुआ । सो तो सब कुछ हो लिया। परंतु अब तो उसका अंत होना चाहिए। अब बच्चों को उस 'सरयू' का ज्ञान क्यों नहीं कराया जाता जिसको उनके पूर्वज इसी रूप में जानते श्रा रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि वावर की सिर भी प्राज अँगरेजी प्रभुता के प्रताप से 'गोगरा' धनी वैठी है और सरयूनांगा-संगम का संग्राम आज इतिहास में 'सरयू' का संग्राम नहीं 'घाघरा की लड़ाई' कहा जाता है। नाम मिटाने से नाम ही नहीं चलता बहुत सा काम भी आप ही सध जाता है। इसी से 'नाम' के हेतु तुलसी का इतना आग्रह है। 'सरयू' के संबंध में कुछ विचार 'कालिदास' में किया गया है. अतः यहाँ इतना ही श्रलं है। आशा है हमारे देश के सयाने शीघ्र सचेत हो इस 'सरयू' का सत्कार करेंगे और इसी को मूल धारा समझेगे। घाघरा तो इसकी सहायक धारा का नाम है । उसको मुख्य धारा का नाम दे गंगा में मिला देना ठीक नहीं। हाँ, राष्ट्रचेतना का उपहास अवश्य है। १७ .