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तुलसी की खोज. २६५.

सौभाग्य की बात ठहरी कि हमारा कवि 'कराल कलिकाल :

नृपाल' को खूब समझता है और उसकी गति-विधि को भी खूब पहचानता है। फलतः इस. कलिकाली उपसंहार चढ़ाई से भी अपनी दृढ़' रक्षा कर गया है। उसके अध्ययन से आप ही अवगत हो जाता है कि वस्तुतः उसकी स्थिति क्या है और किस युग में किस प्रकार उसका जीवन-यापन हो रहा है। किंतु दुःख, लज्जा और ग्लानि की बात तो यह है कि इधर कुछ मनमानी सामग्री के प्रकाश में आ जाने से कुछ ऐसे मनमाने लोग भी तुलसी-जीवन के विधाता वन वैठे जिन्हें यह कहने में रचमान भी संकोच नहीं होता कि- मैं सच कहता हूँ कि इससे पहले मैंने कभी तुलसीदास को पढ़ा तकम था-1 उनके सत्य-कथन की हम उपेक्षा नहीं करते। उनकी. सत्यनिष्ठा का आदर करते हुए हम आशा करते हैं कि भविष्य में हमारे देश में ऐसे सत्यवादी न होंगे जो इस प्रकार की अनधिकार चेष्टा को ही अपना अधिकार समझेंगे । तुलसी का अध्ययन किए बिना उनकी जीवनी में हाथ डालना ठीक नहीं। 'तुलसी-चरित' और 'सोरों-सामग्री' के तुलसी का उस तुलसी से लगाव क्या जिसको हम आप सभी जानते हैं। अतएव कहना हमारा यह है कि तुलसी के जीवन को तुलसी के प्रतिकूल बनाने का उद्योग छोड़कर अब कुछ उनका अध्ययन-मनन होना चाहिए और यह समझ रखना चाहिए कि तुलसी 'राजसमाज' वा शासकवर्ग को कभी प्रिय नहीं रहे । राम, अयोध्या और तुलसी की त्रयी शासक के लिए त्रिताप से कम नहीं रही। अकबर से लेकर मुहम्मदशाह तक 'अवध' पर जो अंकुश रहा उसका निर्देश