पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२८

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. श्री गोसाई-वरित्र का महत्त्व ११ 'प्रसंग महत्त्व का है अतः ध्यान से इसका भाव पढ़ें। इसी के आगे कहते हैं- जै सोई प्रन फीन गाड़ि सु त्रिसूल चढ़ो तरु । ता पर चाह्यो गिरन तबै तेहि डर · व्यापो उर। लोभ जीव को फियो बहुरि उतरो तरिवर ते । चढ़ि पुनि फरि अनुमान टरो नहि अव गिरिवर ते । है तीन बार यहि विधि कियौ चढ़ि भय बस नहिं गिर सकौ । मनसूर नाउ नाचै जो कहु बात हुतो कौतुक तकौ ।। समाचार लहि लोग द्रव्य को लालच दीन्हों। बिदा कियो सो विप्र मोल लै सुकृत प्रवीनो। चढ़ो गोसाइहिं सुमिरि हिये रघुवर को धारयौ । गिरो सो तर ते तुरत नाम रघुनाथ उचारयौ । तत्र तिहिं करुना कर बीच ही पावन करि लियौ लाय हिय । अपनाइ दास फरि हिये भरि राम रूप है दरस दिय ।। [वही, पृष्ठ १२६ 'मनसूर' नाम कुछ क्यों कर कह सकता है ? हम अपने अतीत का अध्ययन अपनी आँख से कर इतिहास का लोप कहाँ रहे हैं ? करें भी कैसे ? यह प्रसंग तो राजा रघुराज सिंह के समय में कुछ और ही बन गया था। तभी तो आपका निवेदन है- आयों एक वणिक पुनि कोऊ । रामदरश लालसं किय सोऊ । तुलसिदास डों विनयं सुनायो । श्री रघुवीर दरस चित चायो । तुलसिदास तब कह मुसकाई । यह तो बात महा कठिनाई । सहजहि रामदरशः . नहिं होई । कोटिन जन्म जात है खोई। वणिक फह्यो है कौन . उपाई । तुलसिदास तब कह्यो वुझाई। . . -