पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३०

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श्रीः गोगई-चरित्र का महत्त्व 'मनसूर' का स्थान जो 'झनी' को मिल गया उससे इतिहास बहुत कुछ भूक हो गया नहीं जो वास्तव में वस्तुस्थिति तो यह थी- पूरब के. विद्रोह से काबुल के शासक तथा अकवर के भाई मुहम्मद का आक्रमण अधिक खतरनाक था। पूरय के विद्रोहियों ने मिर्जा हकीम को उसके धर्म के विरुद्ध आचरण करनेवाले माई के स्थान पर हिंदुस्तान का बादशाह बनाने का इरादा जाहिर किया था। इससे उसके मन में हिंदुस्तान का तस्त हासिल करने की आशा फिर . . उदय हुई। अकबर को हकीम के मनोरम का हाल मालूम था लेकिन उसने भाई समझ कर पहले इस बात पर ध्यान न दिया। बंगाल के विद्रोहियों के अतिरिक दिल्ली दरवार के कुछ अफसरों ने भी मिर्जा हकीम को सहायता देने का वचन दिया था, जिनमें साम्राज्य का दीवान ख्वाजा मंसूर भी था। [भारत का इतिहास भाग ३, पृष्ठ, ७०-७१.] '. 'ख्वाजा मंसूर' ही 'चरित्र' के 'मनसूर' हैं या नहीं इसकी मंसूर की पहचान . यथार्थ जानकारी के लिए इतना और भी स्मरण रहे कि मिर्जा के बढ़ने की खबर सुनकर अफवर ने अनिच्छापूर्वक उसके विरुद्ध प्रस्थान करने का निश्चय किया। उसने एक बड़ी सेना इकही की जिसमें ५०,००० सवार, ५०० हाथी और असंख्य पैदल सिपाही थे। उसने ण्याजा मंसूर को भी साथ ले लिया जिसमें वह पडयन्त्र में भाग न ले सके और शाहजादे सलीम और मुराद भी साथ ही ये। जव. यह सेना पानीपत पहुँची तो,मिर्जा हकीम का सेवक मलिक .सानी कावुली शाही पड़ाव में आया और ख्वाजा के साथ टहरा और उसे मध्यस्थ बना कर अपने स्वामी के विरुधः वादशाह से राय करने लगा। इससे स्वाजा के विरुद्ध वादशाह " का संदेह और दृढ़ हो गया। • ख्वाजा के विरुद्ध फिर कुछ चिट्टियाँ मिली जिससे उसके अपराध के