पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३१

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तुलसी की जीवन-भूमि विषय में बादशाह को संदेह नहीं रह गया। उसने विना अधिक तह- कीकात के स्वाजा को एक पेड़ से लटकवा फर फाँसी दिला दी, जिससे उससे विद्वेप तथा शत्रुता रखनेवाले राज्य के और कर्मचारियों को बड़ी प्रसन्नता हुई। [वही, पृष्ठ ७२-२] कहने की आवश्यकता नहीं कि यही ख्वाजा मंसूर तुलसी का अनुगामी 'मनसूर है। इसके संबंध में इतना और भी ज्ञात रहे कि- ख्वाजा मंसूर के प्राणदंड के विषय में एक और बात कह देनी टीक होगी। उसे दंड देने में बहुत जल्दी की गई। चिटिव्यों की ठीक- ठीक जाँच नहीं की गई। निजामुद्दीन कहता है कि आखीर में मिलने धाली जिन चिट्टियों के आधार पर स्वावा के भाग्य का निपटारा हुआ, निस्संदेह जाली थी। निजामुद्दीन जो पढ़ाव में उपस्थित था, कहता है कि सन्नाट ने ख्वाजा के प्राणदंड पर पीछे से पश्चाताप प्रकट किया । वाक्टर स्मिथ मानसिंह द्वारा भेजी गई चिठ्ठियों के आधार पर ख्वाजा को दोषी ठहराते हैं । किंतु अबुलफजल, जो किसी प्रकार स्वाजा का पक्षपाती नहीं कहा जा सकता, इन पत्रों को असंदिग्ध रूप से जाली समझता था और इसी वजह से उसने उन्हें स्वाला को नहीं दिखलाया। ख्वाजा की मृत्यु का कारण उसके कड़े व्यवहार के कारण उसकी अनियता तथा दरबार के दूसरे अफसरों का विद्वप था, जिन्होंने उसके विरुद्ध जाल रचा। [वहीं, पृष्ठ ७२] इतिहास शिरोमणि डा० ईश्वरीप्रसाद का मत आपके तुलसी का योग सामने है। हम उक्त स्वाजा के दोष की मीमांसा में नहीं पड़ते। हमारे सामने तो तुलसी का 'मनसूर' है न ? सो उसके विषय में उक्त 'चरित्र' का निष्कर्ष है--