पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३४

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श्री गोसाई-चरित्र का महत्व १७ क्यों पड़ें ? हमारा चरित्र' तो इसे आप ही स्पष्ट कर रहा है। देखिए न, उसका निवेदन है-...:: एक मुक्ति पुरी सहजहि सुपास। जह सफल संपदा सुख की रास ॥ जह राम नाम तो रति प्रकास | सपनेहुँ नहिं जहँ जम कि त्रास ॥ दूजो हरिचरित फियो निवास | एक सुवर्न पुनि सोभा सुत्रास ॥ सब पाइ नयन फल है निहाल । भगिनित लीला उत्सव बिसाल | तहं पंडित बहुः श्रुति के निभान | सुरं बानी के वकता सुजान ।। तिन अपने मन बिच कियौ मान । सुनि भाषा रामायन पुरान || . तिन फही. गोसांई सो निदान । फछु उचित न कीन्हो यह विधान || [चरित्र, पृष्ठ २८] पंडितों को तुलसीदास के सामने किस प्रकार परास्त होना पूरब पड़ा और श्री म सूदन सरस्वती ने क्या कुछ कहा, इसे 'कौन नहीं जानता ? पर वास्तव में जानते हैं कितने लोग यह भी कि चरित्र की दृष्टि में इसके पहले 'श्रवध' में- अहनिसि लीला ललित राम के गुन गन गावै । बहु विधि गाइ नचाइ नृत्य करि प्रभुहि रिझावै॥ अंग पुनि कि निहाल अववासी नृत्यकारी। गीतावलि निजु दई जो सब संपति सुखकारी ॥ समरथ पाठ अगान फी दई गंधर्वन ते सरस । पुनि साध द्वार है जीव का विषय उहाँ नहिं अस परस ।। [वही, पृष्ठ २७] तात्पर्य यह कि अभी 'रामचरितमानस' का निर्माण नहीं हुआ था। हाँ, गीतावली बन चुकी थी। रामचरितमानस की रचना जिस राजनीति को लेकर हुई उसे 'पूरच' की चेतना का २