पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३६

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भी गोसांई-चरित्र का महत्व . भवानी की वन्दना के साथ भवानीदास का दर्शन हो गया रामप्रसाद तो अब उनके प्रेरक का साक्षात्कार कीजिए । लीजिए, आप कहते हैं- कवित रीति एकी नहीं, अवरौ सय गुन हीन | दासन जस संबंध लखि, फरिहै छोह प्रवीन ॥२॥ रामचरित रस भृग जे, प्रभु पद दिढ अस नेह । श्री गोसाई अनकूल नित, तिनहि परम प्रिय एह ॥३॥ अग्नंदास अशा दई, हरिभक्तन गुन गाव । भवसागर के तरन को, नाहिन आन उपाय ॥४॥ तातै कछुफ प्रसंग सुभ, सुन्यौ जो सत संवाद । संत सिरोमनिहूँ दई, अज्ञा रामप्रसाद ॥५॥ [:चरित्र, पृष्ठ १०] और इस रामप्रसाद की परंपरा है- श्री स्वामी नंदलाल ब्रह्म रत रामपरायन ।

नगर सरीले बास ब्रह्माकुल के सुखदायन ।

श्रीमत जोधाराम जिनहि कुल कमल दिवाकर । जथा नाम प्रभु आपु मनो तन धरे कृपा कर । प्रथम फछुक बंदन कियौ श्री गुरदेव जो परम हित । अमित दानिनर रूप हरि तिन गुन गन की फाह मति ॥२॥ .. श्रीमत चरन सु दास दुतिया प्रिय जन स्वामी के। तिनके गुन अभिराम राम रति सब विधि नीके। श्री हीरामनि दास जो तिनके गुनगन मंडित । शास्त्रज्ञ रति राम ज्ञान याचारज पंडित || तेहि कुल कैरव 'सुधानिधि रामप्रसाद प्रकास किय। हित चरन विप रस अवध वसि श्री स्वामी की दृचि लिय ॥२॥