पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३७

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•नतरुः. २० तुलसी की जीवन-भूमि .. "मोहि आपन करि जानि मानि कुलकानि पक्ष धरि । विपः लपटान फौन हौ पात्र कृपा कर ॥ विविध प्रसंग सुनाइ गोसाई के सुखदायक, भो निदेस ये चरित..-करहु भापागुन गायक । अज्ञा सिर धरि जोरि फर बिनवौः कवि कोविद चरन । लखि चूक छिमा कीबो अबुध जानि दास अपनी सरन ||३|| [चरित्र, पृष्ठ २-३] श्री स्वामी रामप्रसाद जी के विषय में अभी इतना ही कहना पर्याप्त है कि आप तुलसीदास के अवतार समझे जाते हैं। आपका आविर्भाव काल है- संवत शत सत्रह के ऊपर, दुगुन तीस जब रहे मनोहर । सावन सुदि सचिमी सोहाई, ब्रह्म मुहूरत अति सुखदाई। लगन जोग दिन मंगलकारी । प्रगटेड शिशु सुंदर तनु धारी ॥ [श्री महाराजचरित्र, पृष्ठ ११] एवं साकेतगमन-काल है-- अट्ठारह सौ विक्रमी, संवत इकसठ जान । श्रावण कृष्णा तीज तिथि, दिव्य दिवस मध्यान॥ फियौ गमन. साकेत को, स्व स्वरूप सरसाय ।

: मो रघुनाथ प्रसाद पै, करुणामृत बरसाय ।।

[श्रीमहारानचरित्र पृष्ठ १३४-५] अतएव इस 'श्रीमहाराजचरित्र' की छाया में इतना तो निर्वि- वाद रूप में कहा जा सकता है कि भवानी- रचनाकाल दास. को उक्त तुलसी-चरित्र लिखने का आदेश सं० १८६१ वि० के पहले ही कभी मिला होगा। कब मिला होगा की अपेक्षा महत्त्व का प्रश्न है यह कि कव रचा गया होगा । सो कवि का कथन है-