पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३८

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श्री गोसांई चरित्र का महत्त्व ..:श्रीनाभा जू -जो ‘रच्यौ, भक्तन चरित जहाज । फा प्रसंग. तातः विदित, गावत संत समाजः।। साहू ते यह भिन्न कथा, अद्भुत सुखदाई। फहौं जथामति गाइ पाइ हरि संत सहाई • सकल अपूरन कथा विचित्र प्रसंग विविधि विधि । हरि प्रिय वन अभ्यास नवल बरेनौं मंगल निधिः|| नौ नित्य राम.सो ते कह्यौ कछुक चरित कृत पारसी । तोहू ते यह भिन्न- मति जथा जगत वानारसी ॥ [ चरित्र, पृष्ठ १३] सो इस 'घानारसी' विधान से इतना तो विदित ही हो गया कि इस चरित्र के पहले कोई 'पारसी चरित्र भी था। कह तो . नहीं सकता पर ऐसा कहने में कोई क्षति नहीं कि कदाचित् इस 'पारसी' का रहस्य है श्री भवानीशंकर याज्ञिक की भाषा में- गलता (आमेर-जयपुर) निवासी अनदास जी के शिष्य नारा- यणदास ( नाभादास) रचित्त भक्तमाल केवल १९५ छप्पयं, १७ दोहे तथा. कुंडलिया छंद युक्त ग्रंथ था, परंतु इसकी कलेवर-वृद्धि, उनके शिष्यों द्वारा होती रही । मूल ग्रंथ में सव.मिला कर १२३० पंक्तियाँ अथवा चरण थे; नाभादास जी की : शिप्य-परंपरा के प्रियादास जी ने "भकरस धोधिनी' नामक ६३३ कविशों की भक्तमाल की टीका सं. १७६९ में रचकर ग्रंथ में ३७४६ पंक्तियाँ कर दी। प्रियादासी टीका तो मूल भक्तमाल का अंग ही बन गई। दोनों में से किसी की पृथक सपा रही ही 1 प्रियादासी टीका रहित भक्तमाल की कोई प्रति देखने को नहीं मिलती। इसी प्रकार प्रियादास जी के पुत्र ( अथवा पौत्र) वैष्णव- दास जी ने भी गध-पध-मिश्रित भक्तमाल प्रसंग की रचना कर भक्तमाल' का आकार बदाया । वैष्णवदास जी ने. भक्तमाल के. प्रचारार्थ बड़ा परि-