पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्री गोसाई-चरित्र का महत्त्व २३ सिंहासन · आसीन रहि, दरसन पावहिं . संत । ते फर पूजा आरचा, सुख संपदा. लहंत ॥ मन वच फर्म जिन्है भयौ, रामायन सों, प्रेम । पाठ धारना श्रवन करि, लहत सदा सुख क्षेम ॥ [चरित्र, पृष्ठ ९३-४] 'पूजा-आरचा' के कारण यह भ्रांति नहीं होनी चाहिए कि इसका कारण उसका तुलसी का हस्तलेख है।. कारण यह कि 'रामायण सों प्रेम में महत्त्व 'रामायन' को ही दिया गया है । इसके अतिरिक्त हम देखते यह हैं कि भवानीदास समय पर इसकी सूचना कर देते हैं कि यह प्रति स्वयं तुलसी के हाथ की लिखी थी जो इस प्रकार किसी भक्त को दी गई। प्रसंग कई दृष्टियों से महत्त्व का है । अतः इसका पूरा उल्लेख कर देना उपादेय सिद्ध होगा। सो कहते हैं कि तुलसीदास खैराबाद' से प्रस्थान कर जब घाघरा के मार्ग से 'अवध' पहुँचने के विचार से जलमार्ग से चले तब कुछ और ही घटना घटी, जो है-- आगे दई चलाइ वस्तु भरि दुइ जलजाना । सह समाज चढ़ि चले करत रघुपति गुन गाना ।। सै लख को एक ग्राम रामपुर नाम है ताको । रोकि आगमनी नाव अटालो है यह काफो । अब बिन जगाति नहिं छूटि है कयौ बहुत तिन मान नहि । जम जाति कुनाति जगाति के फाहू की जेहि कानि नहि ॥१॥ असवारी की नाव जवै पहुँची तेहि ठाऊँ। साधन हूँ बहु कह्यौ वतायौ जद्यपि नाऊँ । ताहू पर नहि मान तबै तिन पूछ गोसाई । कहा ग्राम.को नाम कौन भुइधर यहि ठाई ॥२॥