पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४७

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तुलसी की जीवन-भूमि (ङ) 'माला' के अनुसार यह स्वरूप परिवर्तन देखकर तुलसी- दास की अनन्यता पर 'सबनि के मन में इनकी ओर को बड़ो उत्कर्ष आयो है और इन सबनि' में गोस्वामी विट्ठलनाथ जी भी हो सकते हैं जो तुलसीदास को लिवा कर गए थे-जब कि 'बात' के अनुसार मंदिर से बाहर आकर नंददास जी के साथ तुलसीदास ने भी गोस्वामी -विट्ठलनाथ जी को साष्टांग दंडवत की है। (च.) 'माला' में स्वरूप परिवर्तन का प्रसंग यहीं पर समाह हो जाता है, किंतु 'वार्ता में गोस्वामी विट्ठलनाथ जी को दंडवत करने के अवसर पर तुलसीदास नंददास जी से यहाँ भी उसी प्रकार का दर्शन कराने के लिए कहते हैं जैसे नंददास नी ने उन्हें वहाँ कराए थे, और नंददास जी की विनती पर गोस्वामी विट्ठलनाथ जी अपने पाँचवें पुत्र रघुनाथ लाल जी से कहते हैं, रधुनाथ जी, तुम्हारे सेवक आए हैं, इनकुं दर्शन देवो । और रघुनाथ लाल जी तथा उनकी स्त्री जानकी बहू जी तुलसीदास को राम तथा सीता के रूप में दर्शन देते हैं। (छ) 'बरनौं अवध गोकुल गाम' शीर्षक पद 'माला' के अनुसार तुलसीदास ने वहाँ एक वैष्णव मित्र के कई दिनों के आग्रह पर बनाया था, जब कि 'वार्ता के अनुसार यह पद उन्होंने रधुनाथ लाल जी तथा जानकी बहू जी के स्वरूप परिवर्तन पर रचा' (पद में बज तथा अवध का तुलनात्मक वर्णन है, स्वरूप परिवर्तन अथवा दर्शन संबंधी कोई संकेत नहीं हैं, यह द्रष्टव्य है। [ तुलसीदास, पृष्ठ ८१-२] डा० माताप्रसाद गुप्तजी के इस 'तुलनात्मक अध्ययन में आपने देख लिया होगा कि वास्तव में धार्ता' का लक्ष्य क्या है। हम अभी केवल इतना ही कह कर आगे नंददास की स्थिति बढ़ना चाहते हैं कि 'वार्ता के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी इस बात का कोई संकेत नहीं है कि वस्तुतः इस घटना से नंददास का कोई लगाव भी है।