पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४९

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३२. तुलसी की जीवन-भूमि

तवं तुलसीदास ने अपने मन में विचार, कियो जो-या संग में

मुख्य मनुष्य होइ: ताको ठीक करिए । तव तुलसीदास ने संग में जाइके टीक पारी; तक दूसरे दिन नंददास को संग लेके आए: 1. सो वा मुखिया. सो. तुलसीदास ने कहो, जो- यह - मेरो छोटो भाई तिहारे संग में जात है, तातें तुम मार्ग में याको बोहोत जतन सौ राखियो । और अपने साथ लेके आइयो । सो जैसे, काहू. और यह रहि न जाइ। तनःसगरे संगवारेन ने कहो, जो-भलो, और तुम काहू बात की चिंता मति करियो, जो इतने जने साथ में हैं, त्यों एहू है। वही, पृष्ठ ५२८-६] बात परिचित जनों की जान पड़ती है तो भी संदेह को स्थान है ही। अतः आगे सुनिए- और एक समय श्री मथुराजी ते संघ चल्यो, सो श्री जगन्नाथ राइजी के दर्शन को । ता संघ में दस पांच संग में वैष्णव ह गए हते। सो कळू दिनमें वह संघ कासी जाइ पोहोंच्यो। तव तहाँ नंददास के बड़े भाई तुलसीदास तहाँ हुते । तब उनने सुनी जो आज इहाँ श्रीमथुराजी को संघ आयो है । तब तुलसीदास ने वा संध में आइ के पूंछी जो उहाँ श्रीम थुराजी में तथा श्री गोकुल में नंददास नामक एक ब्राह्मण गयो हतो, सो तहाँ तुमने देख्यो सुन्यो होइ तो कहो। [वही, पृष्ठ ५६४] तात्पर्य यह कि यहाँ 'कासी' का नाम खुला और 'पूर्व' के स्पष्टीकरण में कुछ सहायता मिली। काशी में घर. काशी में तुलसीदास का क्या था ? निवेदन है, उसी 'वार्ता' में यह भी. कहा गया है-