पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वार्ता में तुलसीदास हमारे मतानुसार नंददास को तुलसीदास का भाई मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । वार्ता में इस विषय.फा स्पष्ट कथन हुआ है, जिसकी पुष्टि सोरों-सामग्री से भी होती है। वार्ता साहित्य और सोरों-सामग्री की अप्रामाणिकता के संबंध में जो तर्क उपस्थित किए गए हैं उनसे हम सहमत नहीं है। हम गत पृष्ठों में वार्ता साहित्य की प्रामाणिकता सिद्ध कर चुके है भौर सोरों-सामग्री को भी अप्रामाणिक मानने का हम कोई कारण नहीं पाते । ऐसी दशा में जब तक विश्वस- नीय सामग्री अथवा अकाट्य युक्तियों द्वारा इसके विरुद्ध निर्णय न हो पाय, तब तक हम नंददास को तुलसीदास का भाई मानने के पक्ष में हो रहेंगे। [अष्टछाप-परिचय, पृष्ठ ३०२-३ ] श्री मीतल नी के निष्कर्ष से सहमत होना कठिन है। हमारी समझ में श्री नंददास की उक्त रचना ही वार्ता से भ्रान्ति इस बात का निर्णय कर देती है कि इस विषय में 'वार्ता' और 'सोरों सामग्री' मान्य नहीं। कारण यह कि इसमें कहा गया है- .१---श्रीमत्तुलसीदास स्व गुरु भ्राता पद बंदे । २-सेप सनातन विपुल ज्ञान जिन पाइ अनंदे। ३-राखी जिनकी टेक, मदनमोहन धनुधारी । ४-नंददास' के हृदय-नयन को खोलेउ सोई। परन्तु इनमें से किसी की भी संगति 'वार्ता' वा 'सोरों सामग्री' के साथ नहीं बैठती । आश्चर्य तो यह है कि श्री मीतल जी 'गुरु भ्राता' का सीधा अर्थ 'गुरुभाई' न कर न जाने किस प्रमाण पर, किस प्रेरणा.से, इसका अर्थ कर जाते हैं 'ज्येष्ठ भ्राता' 1 कदाचित् 'वार्ता' और 'सोरों सामग्री' की पुकार पर कान दे ऐसा कर जाते