पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५८

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तुलसी की जीवन-भूमि त्रिबिधि भाँति' इरखा करहि, पार न पावै बफ वै । तब मृतक गऊ निसि द्वार द्विज, डारी वृथा कलंक दै॥१॥ भोर भयौ अपराध लाइ संब मिलि दिज घेरो । कंपमान है .दास भक्त . बछल तन हेरो॥ अब प्रभु कछु न बिसाइ लाज बाने की करिए । होइ खलन को मान भंग हम साँसति तरिए । करनाफर गाइ जियाइ तब, दास सुजस जग विस्तरे। खल त्रास मान सब चेत है, आनि भक्त चरनन परे ॥२॥ [चरित्र, पृष्ठ २३-४] अस्तु । नन्ददास को गोस्वामी तुलसीदास का गुरुभाई कहने की एक स्वतंत्र परंपरा है। परंतु यहाँ विस्मय की बात यह है कि इस नंददास के साथ भी मृत्तक गऊ का प्रसंग आ गया है। वैसे तो उसका संबंध किसी और ही 'नंददास' से जोड़ा जाता है। प्रियादास ने उसके परिचय में कहा है- निकट वरैली गाँव, तामैं सो हवेली, रह नन्ददास विप्र भक्त, साधु-सेवा-रागी है। [भक्तमाल, पृ० ४५७] ऐसी स्थिति में भवानीदास का कथन कहाँ तक मान्य होगा ? यह चिन्ता का विषय है। साथ ही यह भी स्पष्ट रहे कि प्रिया-. दास ने जहाँ निकट वरैली गाँव' का स्थान की उलझन उल्लेख किया है वहाँ भवानीदास ने नगर कनउज ढिग वासी' का। इसलिए यह भेद और भी विचारणीय हो गया है । हाँ, नाभादास ने इस 'नद- दास' के विषय में जो कुछ कहा है यह है-