गोस्वामी तुलसीदास के अध्ययन की जो परिपाटी विश्वविद्यालयों
में चल रही है उसमें उनके जीवन का अध्ययनं अनिवार्य हो गया है।
फलतः अनेफ मनीपी उसकी खोज में लगे हैं। जब-तन्त्र यह जन भी
इस विषय में कुछ लिखता-पढ़ता रहा है। परंतु सब से विलक्षण बात
तो यह है कि जिस ईसा मसीह की ख्याति ही 'चमत्कार' के रूप में
है उन्हीं के अनुयायियों की कृपा से हम 'चमत्कार' के कट्टर विरोधी
बन गए हैं। इसे विश्व का सब से बड़ा चमत्कार समझिए। स्व०
ग्रियर्सन महोदय ने यहाँ की भक्ति में ईसाइयों का हाथ देखा है, किंतु
भूल फर भी कभी नहीं देखा है यहाँ के भक्तों के चमत्कार में ईसा मसीह
का कुछ योग भी। पता नहीं, इसका कारण है क्या ? किंतु जो प्रत्यक्ष
और अत्यंत स्फुट है वह है यह कि तुलसी का अध्ययन वस्तुतः ग्रियर्सन
के अध्ययन का है भाष्य ही ! उनके जीवन-वृच को तो निश्चय ही तुलसी
की छानबीन नहीं, हाँ, ग्रियर्सन की सूझ-बूझ
छाया समझिए।
यह सब कैसे और क्यों हुआ और क्यों हमारा देश इस प्रकार परंपरा
से विमुख हो प्रियर्सन-भक्त बन गया आदि की कथा गूढ़ है। अभी
उससे हमारा प्रयोजन क्या ? हमारा वक्तव्य तो अभी इतना भर है कि
हम ग्रियर्सन के अध्ययन और अध्यवसाय की सराहना करते है और
अपने आप को उनका ऋणी समझते हैं। परंतु हम समझ नहीं
पाते और न कह ही पाते हैं कि सचमुच उनकी लोकाराधना सञ्ची और
उनकी ज्ञान-पिपासा पकी थी। नहीं, अध्यात्म के क्षेत्र में तो उनका
कुछ और ही रंग दिखाई देता है और उसफी मोट में उनका आधि-
भौतिफ रूप ही प्रखर होता है। विद्या का प्रयोग किसी व्यापार में कैसे
किया जाता है इसफा दिव्य और ज्वलंत उदाहरण है 'ग्रियर्सन'। हम
फिसी ग्रियर्सन-गाथा' की मीमांसा में भग्न नहीं होना चाहते। नहीं,
हम तो बस इतना भर निवेदन करना चाहते हैं कि यदि उनकी असीम
कृपा से हमारी आँख का 'मोतियाबिंद' निकल गया और उसमें पूरी
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निवेदन