पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/६०

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४४ तुलसी.की जीवन-भूमि परंतु प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में इस प्रदेश में ऐसा नाम पाया भी जाता है और क्या सचमुच नाभादास ने इसका उपयोग व्यक्ति के रूप में किया भी है। तुलसीदास और 'नंददास' के साथ इस 'चंद्रहास' का तुक क्या ? कहाँ 'दास' और कहाँ 'हास' ! हाँ, तुलसीदास को किसी 'चंद्रहास' का पता है। तभी तो 'मानस' में लिख जाते हैं- चंद्रहास हर मम परितापं । रघुपति बिरह अनल संजातं । सीतल निसि तव असि वर धारा । कह सीता हरु मम दुख भारा ।। रामचरितमानस, पंचम सोपान, दो० १०] अव यदि इसी लगाव के नाते उनके अनुज का नामकरण चंद्रहास' हो गया तो ठीक अन्यथा इस कल्पना में कोई तुक नहीं। हमारी समझ में तो नाभादास' के 'चंद्रहास' का सीधा अर्थ है (चन्द्र = कर्पूर अथवा चन्द्रमा की भाँति+हास हो जिसका) प्रफुल्ल, प्रसन्नचित्त । और इसी प्रकार 'अग्रज' का अर्थ है (अन+ज) ब्राह्मण।

कुछ भी हो, कहना हमें यह था कि वास्तव में 'तुलसीदास'

ही नहीं उनके साथ ही उनके तथाकथित नामधारी अनुज 'नंददास' की भी मिट्टी पलीद हुई है 'वार्ता' में। घात वार्ता की दृष्टि यदि न जमे तो स्वयं वार्ता का अध्ययन कर देखें। उदाहरण के लिए 'वार्ता प्रथम का एक 'दृष्टांत' लें। नंददास 'मथुरा' से 'श्रीरणछोर' जी की सेवा में चुपचाप अकेले ही चल पड़े और मार्ग में छत पर एक 'क्षत्री की स्त्री' को 'केश सुखावत' क्या देखा व्रत ले लिया कि अब तो या सी को मुस देखू तब जलपान करूँ।