पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/६६

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तुलसी की जीवन-भूमि थे और जव-तव यमुना मार्ग से 'मथुरा' आते-जाते रहते थे। तो कोई कारण नहीं कि कभी उनकी वार्ता' 'राजापुर' पर भी कृपा- दृष्टि न कर देती और वहाँ के तुलसीदास को भी किसी दिव्य साक्षात्कार का दर्शन न करा देती। कहने का भाव यह कि वार्ता को केवल 'काशीवासी तुलसी का पता है कुछ और कहीं के तुलसी का नहीं। जी, इसी तुलसी को नीचा दिखाने के लिए 'वाता' खड़ी हुई है । उसके नंददास काव्य के नंददास नहीं कहे जा सकते। सच तो यह है कि 'वार्ता' को न तो तुलसी की मान मर्यादा का ध्यान है और न 'नंददास' की प्रतिष्ठा की चिन्ता। उसे तो ले-दे के घस 'पुष्टि' को पुष्ट करना "और श्री गुसाई जी को आसमान पर चढ़ाना है। अन्यथा नंददास को काव्य और साधना की दृष्टि से तुलसीदास का छोटा भाई कहना सर्वथा साधु है। उन्हें तुलसी का मधुर रूप ही समझिए । ऐश्वर्य और माधुर्य की यह जोड़ी धन्य है। इसका जो परिचय 'चरित्रं' में प्राप्त है स्तुत्य है 'वार्ता की भाँति निंद्य नहीं। 'वार्ता जैसी कदर्थना तुलसी की अन्यत्र कहाँ ?