पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७१

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तुलसी का सूकरखेत- तासु शिष्य के शिष्य है. तासु शिष्य विख्यात । - स्वामी हरीप्रसादज्यहि देखि गर्व छुटि जात |७:. तासु शिष्य लघु मैं भयोः नाम जानकीदास। मानस की परिचारिका फरन : चहौं सुखरांस ||2|| श्रीमत् तुलसीदास पद बंदि सुमिरि सियराम । मानस की परिचारिका करौं यथा अमिराम || || वर्ण स्वल्प आशय अमित अर्थ फरै मन बोधि। श्री मानस परिचारिफा नाम धरो 'शुभ शोधि ॥१०॥

.. परंतु खेद है कि यह संकल्प पूरा न हुआ और प्रकाशन के प्रमाद से इसका नाम छप गया 'रामायणमानसप्रचारिका। जो हो किसी संवत् के अभाव में इसकी रचना का ठीक समय जानना कठिन था। किन्तु सौभाग्य से भूमिका में उसका दर्शन हो गया। भूमिका-लेखक श्री द्वारकादास परमहंस लिखते हैं- प्रकट हो कि श्री अयोध्या जी में श्री महाराज रामप्रसाद जी की गद्दी पर जो महन्त श्री हरिउद्धव प्रसाद जी हुए तिनके शिष्य श्रीजानकी- दास जी विख्यात रामायणी तिन्हों ने यह टीका नाम मानसप्रचारिका सम्बत् १९३२ में किया। अतः स्पष्ट ही इसका रचना-काल सं० १९३२ वि०है। तो फिर पूछा जा सकता है कि यदि यही 'सूकरखेत' की परंपरा है और वस्तुतः । 'सरयू-घाघरा-संगम' ही सोरों का संघर्ष तुलसीदास का अभीष्ट 'सूकरखेत' है तो आज फिर इतनी इसकी चिन्ता क्यों ? क्या कहीं से कुछ और का तौर बन गया है क्या? जी। देखते नहीं हैं कि कहीं से कोई गरज उठी है कि- .... "-