पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७३

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'तुलसी का सूफरखेत ५६ हस्तिनापुर में जनमे थे । अन्य लेख से उनका जन्म चित्रकूट के समीप हाजीपुर एक प्राम में हुआ था; लोग ऐसा भी कहते हैं कि जिला. बाँदा में यमुना के तीर राजापुर एक प्रांम है वहाँ उनकी जन्मभूमि थी। बालकपन में ये सूकरखेत ( सोरों) में रहे, जहाँ पहले पहल श्रीरामजी की भक्ति में रंगे गए। रामचरितमानस, रामदीन संस्करण ] ग्राउस-ग्रियर्सन का यह साहिबी सूकरखेत अपना . काम धीरे धीरे कर ही रहा था कि -सहसा पंडित रामनरेश त्रिपाठी के मानस का विस्फोट हुआ और सबका ध्यान द्वंद्व का उदय राजापुर से-उचटकर. सोरों में जा लगा। सोरों 'रामचरितमानस' का 'सूकरखेत' ही नहीं रहा। नहीं वह, तो विपुल प्रमाण के साथ तुलसी का जन्म- स्थान भी बन गया । साहित्य के पारखी. असमंजस में पड़ गए। तुलसी की पंक्ति सोरों में बैठती न थी और सरकारी पक्ष उधर को ही भारी पड़ रहा था। विकट स्थिति का सामना था । चरित्री' सूकरखेत साहिवी शासन में कभी का पीछे छूट गया था और 'साहिबी' सूकरस्नेत ही तुलसी का सूकरखेत माना जाता था। संयोग कुछ ऐसा जुटा कि एक दिन चलती रेलगाड़ी में इस जन को कुछ सूकरखेत के कल्पवासी यात्री मिले। उनके मुंह से जब 'चरित्री'. सूकरात का पता चला तव तुरंत 'पश्चिम' का जादू उतर गया और सहसा 'पूरव' की सुधि हो आई.। स्व० श्राचार्य शुक्ल जी से जब इसकी चर्चा हुई तब उन्होंने इसका समर्थन किया, उद्धार किया । उनके एक शिष्य श्रीभगवतीप्रसाद सिंह ने आगे चलकर इसपर एक लेख लिखा । :फलतः : 'सूकरखेत की जिज्ञासा सवके सामने है :-