पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७४

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तुलसी का बूकरखेत की चाराह भगवान की एक मूर्ति भी मन्दिर में स्थापित है। वहाँ न जाने कितने दिनों से पोप के महीने में मेला लगता तथा स्नान और कल्पवास होता है । फैजाबाद, गोंडा, बहरायच आदि उपरी जिलों के लाखों यात्री वहाँ भाते हैं । अयोध्यावासी ही नहीं अन्यत्र के भी रामा- नन्दी वैष्णव साधु अधिक संख्या में वहाँ पौप में, महीने भर रहा करते हैं। रामानन्द-मत के अनुयायी अपने गुरु के साथ बाल्यावस्था में उस मत के प्रधान तीर्थ अयोध्या जी अवश्य गए होंगे और, इसी सूकरखेत या वाराहक्षेत्र में उन्होंने कल्पवास-काल में या मेले के दिनों में वहाँ · रहने पर श्रीराम-कथा सुनी होगी। इसलिए. मानस में कथित 'सूकर- खेत' के सहारे सोरों (एटा) से मानसकार गोस्वामी जी का जन्म- संबंध स्थापित करना समीचीन नहीं; जैसा आरंभ में ही बतलाया जा चुका है, वहाँ तो श्री वंदन पाठक जी के छप्पय से कुंडलिया रामायण आदि के रचयिता अन्य ही तुलसीदास गुसाई का जन्म लेना प्रकट होता है। [वीणा, मई १९३८, पृष्ठ ४४५-८] साथ ही पादटिप्पणी के रूप में इतना और भी स्पष्ट करते हैं- (मानस की संतमन उन्मनी ) टीका-जिसका उल्लेख भागे किया जायगा-में बालकांड पृ० २०४ में लिखा है- तत्पश्चात् नैमिणवन के बाराह क्षेत्र, नाम स्थान को साथ ही भाए। तहाँ कुछ.दिन रहे। वहाँ पाल्मीकि, अध्यात्म इत्यादि-रामायण श्रवण कियो । उनकी कृपा करि. काव्य-शक्ति भई । ( इति घृहदामायण माहात्म्य नैमिपारण्य के "वाराह क्षेत्र में जो अयोध्या के पश्चिम ओर है) १८८९ में बनी इस टीका से भी हमारे विचार की पुष्टि होती है। [वही, पृष्ठ ५४८] .