पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७६

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- तुलसी का सूफरखेत बात बढ़े मार्के की है। 'सोरोंशूकर' का अपभ्रंश हो सकता है, और वराहावतार का किसी कल्प में स्थान भी, किंतु उसे तुलसी का 'सूफर- खेत' कहना एक बहुत बड़ी साहित्यिक तथा ऐतिहासिक भूल है। यह भी बता देना आवश्यक है, कि उकार की मात्रा का प्रयोग आज भी पसका के रहनेवाले घोलने में बहुत करते हैं जैसा कि 'मानस' में भी है। जैसे कि राम, भरतु, इत्यादि। सूकरखेत को वराहावतार का स्थान सिद्ध करनेवाले मुख्य प्रमाणों में 'शूकरक्षेत' नाम के अतिरिक्त 'पसका' तथा 'घाघरा नदी के नाम विशेप सहायक है । पसका = पशुका = वह स्थान जहाँ पशु रहते हैं। . वह स्थान जहाँ भगवान ने पशुरूप धारण किया था = शूकर- क्षेत्र । अथवा, पसका = पशुका % पशु एव इतिः (पशुप्रधान)-कुत्सितः पशुः। (कुत्सित पशु अर्थात् सूकर) अथवा, भगवान जब अधिक समय तक रसातल से न लौटे तव अनिष्ट की. आशंका से पियों ने यहाँ उपवास किया था जिससे इस स्थान का नाम. 'उपवासका' पढ़ाः जो धीरे-धीरे पवासंका, पासका, पेसका हो गया । घाघरा' 'घुरघुर' शब्द का अपभ्रश माना जाता है। क्रोधावेश में हिरण्याक्ष के वध के समय वराह भगवान बड़े ऊँचे स्वर से 'धुरघुर' शब्द करते हुए निकले थे, इससे नदी का नाम घाघर पड़ा । (श्री भगवतीप्रसाद सिंह जी) [ मानस-पीयूष, द्वि० सं०, भाग १, पृष्ठ ५०५-७] श्री भगवतीप्रसाद सिंह जी ने जिस कुटी का उल्लेख किया है उसके निर्माता नरहरिदास' थे और उन्हें पसका राज्य से माफी' मिली थी इसमें कुछ विशेष विवाद नहीं। नरहरि की भांति : किंतु यह सत्य है कि उक्त नरहरिदास गोस्वामी जी के गुरु नहीं । हाँ, अमदास के " ५