तुलसी की जीवन-भूमि अखाड़े के प्राणी हैं और फलतः हुए भी हैं उनके बहुत बाद में । इस समय इसकी जाँच चल रही है । आशा है इसके वर्तमान अधिकारी श्री जगदेवदास जी इसकी स्थिति को अधिक स्पष्ट कर सकेंगे। सच तो यह है कि इस क्षेत्र का महत्त्व अभी नहीं आँका गया है। हमारी समझ में इसको 'अयोध्या संगम की महिमा और नैमिषारण्य से अलग करके नहीं देखा जा सकता। दोनों के मध्य में इस संगम का संस्थान है । इसके विषय में टाँकने की बात है- सरयू और घाघरा के संगम में दस कोटिसहन तथा दस कोटि- शत तीर्थ हैं। उस संगम के जल में स्नान करके एकाग्रचित्त हो देव- ताओं और पितरों का तर्पण करे तथा अपनी शक्ति के अनुसार दान दे । फिर वैष्णव मंत्र से हवन कर के पवित्र होवे। अमावस्था, पूर्णिमा, दोनों द्वादशी तिथि, अयन और व्यतीपात योग आने पर संगम में किया हुआ स्नान विष्णु-लोक प्रदान करनेवाला है। विष्णुभक्त पुरुष, भगवान् विष्णु की पूजा करके उन्हीं की लीला कथा का श्रवण करते हुए विष्णु- प्रीतिकारक गीत, वाद्य, नृत्य तथा पुण्यमयी कथा-वार्ता के द्वारा रात्रि में जागरण करे । तत्पश्चात् प्रात:काल विधिपूर्वक श्रद्धा से स्नान करके भगवान् विष्णु का पूजन करे और ब्राह्मणों को यथाशक्ति सुवर्ण आदि दान करे। [ 'कल्याण संक्षिप्त स्कंद-पुराणांफ, पृ० ३६७ ] 'कथा-वाता' को 'कथा सो सूकरखेत' में क्यों न चरितार्थ देखा जाय ? सो सोरों के प्रमाण के समीक्षण में उधर डा० माताप्रसाद गुप्त सूकरखेत्त' के प्रसंग में लिखते हैं-