पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७९

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६८ तुलसी की जीवन-भूमि -अथवा 'सूकरखेत' रहा हो, तो क्या यह संभव नहीं है कि संतों का वह समु- 'दाय जिससे हमारे कवि को राम की शरण में जाने की यथेट प्रेरणा मिली, कभी उस. 'सूकरखेत' की यात्रा के लिए निकला हो- किसी ऐसे अन्य तीर्थ जैसे मथुरा-वृन्दावन की यात्रा के लिए निकला हो, जो उस 'सूकरखेत से दूरं न रहे हों, और उसी सिलसिले में उसने उस 'सूकरखेत' की भी यात्रा की हो । [तुलसीदास तृ० सं०, पृष्ठ १५७ ] कल्पना की कुदान का अन्त कहाँ ? आठवाँ वह प्रमाण है- किसी चरित-लेखक ने राजापुर (बाँदा ) को, किसी ने तारी को, किसी ने हानीपुर (चित्रकूट) को और किसी त्रिपाठीजी की उलझन ने हस्तिनापुर को तुलसीदास का जन्म-स्थान माना है । पर किसी ने इस शंका का समाधान नहीं किया कि तुलसीदास जब बहुत चालक और अति अचेत थे (यथा-- मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेत । समुझी नहिं तस वालपन तब अति रहेउँ अचेत ।) तब वे सूकरखेत कैसे पहुँचे । यदि यह मान भी लिया जावे कि वे मैंगते के लड़के थे, घर से भीख माँगते हुए उधर निकल गए होंगे, तो इस प्रश्न का हल होना और भी कठिन हो जायगा कि काशी और प्रयाग जैसे निकटवर्ती शहरों और तीर्थस्थानों की अपेक्षा सूकरखेत में उनके लिए कौन सा विशेष आकर्षण था। सूकरखेत मँगतों का कोई खास अड्ढा तो था नहीं; और राजापुर या तारी जैसे गाँव वालों ने तो शायद सूकरखेत का नाम भी न सुने होंगे।

[तुलसीदास ४० सं०, पृष्ठ १५३ : उद्धृत ]