पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/८

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आता। मुगल-शासन जैसा भी रहा हो पर क्या कहें हम उस 'शासन' को जिसके साहित्य में 'तुलसी' का नाम नहीं। 'महामुनि' की यह उपेक्षा क्यों? हमारी समझ में इसका हेतु है। हमने उस हेतु को समझने का प्रयत्न किया है, और पढ़ा है इस प्रसंग में जो कुछ उसका सार सबके सामने है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि इस तथ्य को समझे बिना तुलसी की स्थिति को समझ पाना असंभव है। अतः इसको समझने का उद्योग किया है और इसके प्रकाश में 'तुलसी की जीवन- भूमि' का प्रकाशन भी किया है। अच्छा होता यदि यह अध्ययन और गभीर, व्यापक और उदार होता। किंतु इसके लिए तो अभी आगे का समय है और उस समय के उपयोग के लिये इसमें सरकारी सहयोग की सर्वथा अपेक्षा है। शासन का ध्यान इधर गया भी है। आशा है समय पर यह सब कुछ भी हो लेगा। अभी तो प्रचलित विचार-धारा के मोड़ के लिये इतना ही अलं है।

इसके प्रणयन में उस प्रचुर सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है जिसका जन्म ही किसी 'हाँ में हाँ' मिलाने के हेतु हुआ है अथवा उस सामग्री का भी सत्कार नहीं किया गया है जिसका प्रणयन कुछ साधने के निमित्त हुआ है। प्राचीन भक्तों ने किसी भाव में आकर जो कुछ लिख दिया है उसको पढ़ने का प्रयत्न किया गया है। उसमें 'समय' की झाँकी मिली है उसकी झलक से इतिहास प्रकाश में आ गया है। मर्मज्ञों को भा गया तो अच्छा ही अन्यथा अध्ययन को भोड़ मिला और उसको कुछ आँख से काम लेने की प्रेरणा मिली यही क्या कम है ?

काशी नागरीप्रचारिणी सभा का 'हिंदी साहित्य का वृहत् इतिहास' प्रकाश में आने को है। उसके निर्माण की योजना भी प्रस्तुत हो चुकी है। ऐसी परिस्थिति में इस 'भूमि' का दर्शन अनुचित न समझा गया तो इसका प्रकाशन धन्य हो गया अन्यथा बुद्धि-विलास के रूप में इसका महत्त्व तो है ही। फिर अधिक चिंता क्यों?