पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/८२

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तुलसी का सूफरखेत शिष्य अनंतानंद के, नरहरिदास सुनानं । तासु कथा वर्णन फरौं, अवशि अनंद निधान ॥ १॥ और कथा-वर्णन के उपरांत श्राप ही कह जाते हैं। सोई नरहरिदास प्रभु, जाफो सुयश प्रकास । जासु शिष्य वगं विदित भो, स्वामी तुलसीदास ॥२॥ [वही, पृष्ठ ६२१ ] उधर भवानीदास का कथन है- पुनि श्री अनंतानंद जी कृष्णदास पौहारि पुनि । श्री अमदास रघुनाथ प्रिय गांवत जिनके जगत गुन ॥१॥ [चरित्र, पृष्ठ १३ ] कहने का तात्पर्य यह कि गोस्वामी तुलसीदास और अग्रदास श्री अनंतानंद के प्रशिष्य थे और चरित्री सूकरखेत का अखाड़ा 'अनदास' का अखाड़ा' कहा जाता है। इस जन ने संगम पर जाकर यह जानकारी प्राप्त की है। अभी इतना ही अलं है। हाँ, सोरों को जो साहिबी 'सूकरखेत' कहा गया है उसका अर्थ यह नहीं कि साहिबों के पहले सोरों का 'सूकरखेत' से कोई नाता ही नहीं था। नहीं उसका अर्थ इतना सोरों वा सफरखेत ही है कि रामचरितमानस' के 'सूकरखेत' को सोरों' गौसंग प्रभुओं ने ही बनाया है। उनकी शिक्षा के फलस्वरूपं ही यह सोरवी सूकरखेत तुलसी को लेकर खड़ा हुआ है। अन्यथा अतीत का परंपरागत कोई भी सच्चा सूत्र ऐसा हाथ नहीं लगता जिससे कि सोरों की यह कल्पना प्रकाश में आए । हाँ, अँगरेजी शासन में आने के पहले भी सोरों को 'सूकरक्षेत्र' कहा जाता था, इसका प्रमाण हमारे पास है जो धड़ल्ले से सबके सामने परीक्षा के लिए प्रस्तुत किया