पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/८३

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.७२ तुलसी की जन्म-भूमि जा सकता है और खुल कर कहा जा सकता है कि छोड़िए सोरों- सामग्री के जाल को मार लीजिए 'सोरों पक्ष के इस पुष्ट प्रमाण को । सारसी तुलसीदास के समकालीन वीरसिंह बुन्देल के राजकवि मित्र मिश्र की है। 'वीरमित्रोदय' के परिचय की आवश्यकता नहीं। उसी प्रामाणिक प्रथ का प्रमाण है । लिखते हैं- भय सफरक्षेत्रमाहात्म्पम् । चराहपुराणे, चराद उवाच । परं फोफामुखं स्थानं स्थानं अन्नानक परम् । परं च सीकर स्थानं सर्वसंसारमोचकम् ।। यन संस्था मया देवि घृतासि रसातलात् । तम भागीरथी गा मम शोचार्थमागता ।। अधिक क्या संक्षेप में- ये मृतास्तत्र मुभोणि क्षेत्रे करके मम । तारिताः सर्वसंसारात् श्वेतद्वीपाय यान्ति ते ।। [वीरमिनोदय, तीर्थप्रकाश, पृष्ठ ३७५ ]. फिर भी यह टाँक रखने की बात है कि व्यवहार में कभी इसका सूकरखेत' नाम नहीं जगा है और सदा प्रचार में इसका नाम 'सोकर' वा ऐसा ही कुछ रहा है जो आज 'सोरों' के रूप में विराजमान है । तुलसीदास के समय में भी वह 'सोरों' वा 'सोलं' था ऐसा मानने मैं कदाचित् सोरों को भी कोई आपत्ति नहीं। यहाँ की एक विशिष्ट घटना की व्याख्या में स्व० श्री राधा- कृष्ण दास जी लिखते हैं कि नागरीदास- .... वहाँ से श्रीजमुना जी का स्नान करके सोर्स में आकर रहे । यह स्थान जिला एटा में है। यहाँ बुढगंगा जी का स्नान किया। यही भग-