पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/८४

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तुलसी का सूफरखेत 'चान का श्री बाराहावतार हुआ है। हिरण्याक्ष को मारा है। इसका उपनाम उकलक्षेत्र और दूसरा शकरक्षेत्र है। नागरसमुच्चय, जीवनचरित्रं, पृष्ठ २१] यदि 'सोरों' के उपनाम के रूप में 'सूकर खेत की चर्चा रहती तो बात ही और थी। किन्तु आज की सोरों की सनक तो स्थिति ही कुछ और है। हो या न हों, तुलसी सोरों के हो रहे बस यही आज का संकल्प है । और साहित्य ? उसकी कुछ न पूछिए। उसकी वैज्ञा- निक परीक्षा से भन्ना कर डा० माताप्रसाद गुप्त लिखते हैं- फलतः ऐसा लगता है कि सोरों के तुलसीदास और नंददास ने जो काम स्वतः नहीं किया उसके लिए उन्होंने अपने बेटों-भतीजों को और इन बेटॉ-भतीजों ने अपने शिष्य प्रशिप्यादि को उपदेश कर दिया था, ताकि उनके दिवंगत हो जाने के बाद भी उनके जन्म-स्थान, जाति- पाँति, बंश-परंपरादि का इतिहास केवल काव्य संग्रहों, चरितों, अन्य प्रकार की कृतियों और वर्षफलों में ही नहीं, पुप्पिकाओं में भी सुरक्षित रहे।

तुलसीदास तृ० सं०, पृष्ठ १२४ ]
कहीं अच्छा होता यदि यहीं उनका यह निर्देश भी गोचर हो

जाता कि उनके प्राकट्य की तिथि भी समझा कर नियत कर गए थे. अन्यथा सं० १९९५ से ही उनका साक्षात्कार क्यों होता ? जो हो इसी सामनी के बलबूते और कुछ सरकारी सुझावों के आधार पर श्री रामदत्त जी: भारद्वाज का पक्ष है कि सोरों के अतिरिक्त दूसरा कोई स्थान तुलसी का 'सूकरखेत' हो ही नहीं सकता। ठीक है। परन्तु सच तो कहें आप के निजी प्रमाणों के अतिरिक्त कहीं आप को कुछ ऐमा उल्लेख भी मिला है कि कवि तुलसीदास सोरों गए भी थे.? जी। उन्हीं डा. गुप्त का यह भी निवेदन है:-