पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/८७

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७६ तुलसी को जीवन-भूमि "मोरे मन प्रवोध जेहि होई से यह भी ध्वनित होता है कि तुलसी उस कथा का गान भर करना चाहते हैं। अब विचारणीय यह हो जाता है कि वास्तव में तुलसी के इस कथन का,मर्म क्या समुशी नहिं तसि बालपन तब अति रहे। अचेत । क्या गुरु से 'सकरखेत' में 'बालपन' में कथा सुनी गई और 'फिर 'युवापन' में उनसे कथा सुनने का अवसर नहीं रहा ? अब यदि यही बात है तो भली भाँति जाने बिना लिखने का संकल्प कैसा ! निदान हमारी समझ में तो परिपकावस्था में ही 'सूकर- खेत' में यह कथा सुनी गई। 'वालपन' में तो वह संत-मंडली में जहाँ-तहाँ जिस-सि भाव से सुन ली गई थी। निदान 'सृकरखेत' को तुलसी का जन्मस्थान नहीं माना जा सकता