पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/९२

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राजापुर के तुलसीदास ८१ में कह लें सन १२२१ हि० से सन् १२५३ हि० तक आप की गद्दी रही। फिर आँख मुंद जाने पर आपका बेटा बहादुरशाह गद्दी पर बैठा और मरते-मरते तड़प कर कह गया- मेरी फत्र पर कोई भाए क्यों ? कोई चार फूल चढ़ाए क्यों ? जो किसी के काम न आ सका | वह एक मुश्त गुजार हूँ। भाव यह कि कुछ न होने पर भी मुगल बादशाह का मोल था और उसके नाम से बहुत से कार्य सधते थे। फिर दयनीय अकवर द्वितीय से यदि महनीय अकबर महान् का कार्य लिया गया तो इसमें आश्चर्य क्या ? आश्चर्य तो इसमें अवश्य है कि हमने अपने तारक 'महामुनि' को भी मुगल-माफीदार बना दिया और न जाने किस तुलसीदास को महात्मा गोस्वामी तुलसीदास समझ लिया। जी। राजापुर की शोध आगे बढ़ी और सं० १९९९ वि० में 'श्री तुलसी स्मा० सं० पाठशाला' के प्रधा- प्रमाण का पोल नाध्यापक श्री महादेव पाण्डेय जी ने 'तुलसी चरित' के रूप में कुछ सामग्री उपस्थित की । प्रस्तुत सामग्री के पृष्ठ 'ब' पर आपको पढ़ने को मिलेगा- ( कतिपय प्रमाण-पत्रों की एक झलक) गोस्वामी जी के प्रधान शिष्य गनपतराम के वंशज अभी तक मौजूद है । तुलसीदास जी के नाम पर मिली हुई मुभाफी के हकदार ये ही लोग हैं-वंशावली इस प्रकार है :- ६