पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८४ . तुलसी की जीवन-भूमि का महसूल' स्पष्ट नहीं होता। 'व' को जोड़कर जो 'स' किया गया है तो जोड़कर 'श्रंस भी किया जा सकता है। हमारी समझ में तो इस "अंस मैका महसूल' का अर्थ होगा मुआफी का महसूल । इससे जाना जा सकता है कि उक 'मुआफी' कभी गोस्वामी तुलसीदास को ही मिली थी और उनके 'अंश' को ही उनके शिष्य श्री गणपति उपा- ध्याय के वंशज भोग रहे हैं। इसके बारे में कुछ और कहना ठीक नहीं जंचता। कागद की जब तक पूरी पड़ताल न हो ले तव तक यों ही कुछ और दूर तक बुद्धि को दौड़ाना ठीक नहीं। [ तुलसीदास, पृष्ठ ३१-२] . कागद की पूरी पड़ताल तो तब हो जव वस्तुतः उसमें कुछ राजापुर के पक्ष के समर्थन में जान हो, नहीं तो पोल खुल जाने पर पूछता कौन है ? किंतु तब भी अब पट्टा का प्रमाण क्या : राजापुर की कलई आप ही खुल जाती है। लीजिए, इस वंश का एक दूसरा पट्टा है। यह आप ही साखी भरता है कि वास्तव में इस वंश के सीवाराम' उपाध्याय हुए कब और पा क्या रहे हैं किससे क्यों ? अच्छा तो वह पट्टा है- श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा अमान सिंघ जू देव ते पं० श्री उपाध्या सीवाराम को सनधि कर दई जो आपर मौजे मझिगवा में कस्वा राजापुर बसतु है सु आगै तें ये उहाँ की राह रकम हाटफेट को पाइ आए होइ सु पाझे जाई पुरानी सनधि वर हुकुम हाल कोऊ आमिलु मैं मार जिमींदार मुजाहिम न होइ हुकुम हनूर पोप सुदि १५ सं० १८१३ मु. लुढ़वारौ। [ तुलसीदास, ४० सं०, पृष्ठ १४८-६ ] तो क्या अब भी सिद्ध करने की आवश्यकता रही कि पं०