पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/९६

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सजापुर के तुलसीदास 'मदारीलाल के भाई पं० 'शिवाराम' वा 'सीवाराम सं० १८१३ में विराजमान थे ? यदि नहीं तो पाठक स्वयं सोच लें कि इन लोगों के पिता पं. गनपतराम' क्या किसी भी दशा में गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन माने जा सकते हैं ? 'हाँ' कहने का साहस कदाचित् किसी प्राणी में हो। हाँ, हम जानते हैं कि. 'राजापुर के पास एक और भी फरमान की हकीकत फरमान है जिसके बारे में उक्त डा० गुप्त जी का निवेदन है- फरमान फारसी में है, इसलिए उसका अनुवाद मान दिया जा रहा है। ठीक हैं। हम भी उसी अनुवाद का अनुगमन करना, ठीक समझते हैं । सो है- सही फरमान ता० २५ माह आबान इलाही सन् ३ यह है कि साहले सूबा और इलाहाबाद के हाल और मुस्तकबिल ( वर्तमान और भविष्य के मुतसद्दी ( अहलकारान) शाही इनायत के उम्मीदवार होकर जाने कि इस वक्त उधो बल्द गनपत ने में हाजिर होकर इस्तगासा दिया और फरियाद चाही है कि हुक्काम परगना गहोरा जकात व दूसरे उठा दिए गए सायरों "(करों ) की इल्लत में, जो कि हुजूर की सल्तनत में मुभऑफ हैं, मौजा विक्रमपुर (जिसका नाम पीछे राजापुर हुआ ) के रहनेवालों से और परगना मंजकूर के दूसरे रहनेवालों से वसूल कर रहे हैं, और उन लोगों की हालत में मुजाहिमत कर रहे हैं। चाहिए कि मामले की हकीकत को समझकर जिस तरह काम हो रहा है उसे न होने दें, ताकि परगने मजकूर के हाकिमों और आमिलों में से कोई भी उन कामों को जो मना कर दिए गए हैं न करने पाए और लालच में आ कर किसी किस्म की वेजा माँग.न करें। इस बावत निहायत ताकीद की जाती है )