पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/९७

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तुलसी की जीवन-भूमि और जो कुछ हुक्म दिया गया है उसके खिलाफ न जावें । तारीख सदर मजकूर सन् इलाही ! [ तुलसीदास, तृ० सं०, पृष्ठ, १४८ ] इस 'फरमान' का यथार्थ मूल्य नहीं आँका जा सकता। 'ऊधो' और 'गनपत' को हम जानते हैं तो पुत्र और पिता के रूप में नहीं, जैसा कि यहाँ है। हाँ, पौत्र और पितामह' के रूप में, जैसा कि उक्त वंश-वृक्ष में है। और लोगों के कहने से यह भी मान लीजिए कि यह 'विक्रमपुर' 'राजापुर' ही है तो भी यह कैसे मान लें कि इसका कुछ 'तुलसी' से भी लगाव है ? कहा जाता है कि इसमें इलाही सन् ३' का उल्लेख जो है । सो भी कुछ काल के लिए सत्य । परंतु उसका ईसवी सन हुआ १५८७ । कारण यह कि सन् १५८४ के 'नवरोज' से इलाही सन् का आरंभ हुआ । इस प्रकार १५८४+३= १५८७ सिद्ध हुआ और यह विक्रम संवत् चना १६४४ । तो इसके आधार पर यह कहा जा सकता है न कि गनपत को सं० १६४४ में माफी मिली ? परंतु 'ऊधो वल्द गनपत' का दरवार में जाना कब हुआ ? कहा गया है कि सम्राट आलमगीर के समय में । अर्थात् किसी भी दशा में सन् १६५८ के पहले नहीं। और अधिक से अधिक सन १७०७ तक । किंतु हमारी समझ में यह ऐसा है नहीं। कारण यह कि एक तो 'मुहर' पर 'आलमगीर' के आगे दो (1) लिखा हुआ है और दूसरे इसकी नकल' की मुहर पर छाप है 'शाह आलम' की। इसी से हमारा कहता कि यह आलमगीर आलमगीर द्वितीय द्वितीय की छाप है जिसके उपरांत कुछ समय पीछे शाह आलम बादशाह धना था। इस आलमगीर का शासन-काल है सन् १७५४ से १७५९ 6