पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/९८

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राजापुर के तुलसीदास ७ तक और शाह आलम का समय है सन् १७६१ से १८०६ तक। अतएव कोई कारण नहीं दिखाई देता कि हम इन दो सों की अवहेलना कर क्यों इसे औरंगजेब के समय में सिद्ध सममें ? और स्थिति को देखने से समझ में तो ऐसा आता जान पड़ता है कि यह 'इलाही' भी कहीं मूल में 'जुलूसी' न हो । यदि कहीं ऐसा हुआ तो इस फरमान का समय आप ही हो जायगा सं० १८१४.वि० । अर्थात् उसी समय के आसपास जब बुंदेलखंड के शासक 'पद्दे' वा 'सन्नद"को पक्की करने में लगे हैं। ऐसी स्थिति में देखना यह होगा कि वस्तुतः फिर 'मदारीलाल' का संबंध किसी तुलसीदास से है क्या और स्वयं तुलसीदास यदि गोसाई' हैं तो कैसे । उपाध्याय कुल से अभी कोई प्रमाण उनके कवि वा महात्मा होने का तो कहीं मिला नहीं। फिर इसका रहस्य क्या है ? अपनी ओर से अधिक तर्क-वितर्क करने की अपेक्षा कहीं '. गोसांई शासक 'अच्छा है यह बता देना कि श्री गोरेलाल तिवारी के कथनानुसार:- इस समय ऐसे झगड़ों के कारण किसी राजा को भी चैन न था। सब राजाओं का ध्यान अपनी रक्षा की ओर लगा हुआ था। राज्य- व्यवस्था की भोर किसी का ध्यान न था। पूने में भी राज्य व्यवस्था कुछ अच्छी न थी। बुंदेलखंड में मराठों की व्यवस्था कुछ ठीक थी, परंतु यहाँ भी एक नया राज्य स्थापित हो रहा था। झाँसी के समीप ही गोसाई लोगों ने बहुत सी सेना एकत्र की थी और वे मराठों को हरा कर एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहते थे। गोसाई लोगों का पहला राजा इन्द्रागिरि था। इसने अपनी सेना लेकर सं० १८०२ में मोठ परगने पर अपना अधिकार कर लिया। यहाँ पर गोसाई लोगों .