पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/९९

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८८ तुलसी की जीवन-भूमि ने एक फिला भी बनवाया। अपनी सेना बढ़ाकर वे लोग आसपास का देश अपने अधिकार में करने लगे। थोड़े ही दिनों में उन लोगों ने ११४ गाँव अपने अधिकार में कर लिए। उस समय झाँसी में मराठा की ओर से नारोशंकर नाम के एक सरदार नियत थे। नारोशंकर ने गोसाई लोगों को दबाने का प्रयत किया | संवत् १८०७ में उन्होंने गोसाई लोगों को एक युद्ध में हरा दिया । इन्द्र गिरि को हारकर मोठ से भाग जाना पड़ा। मोठ से भागने पर इन्द्र गिरि इलाहावाद गया और इलाहाबाद से वह अवध के वजीर शुजाउद्दौला के पास आया । इन्द्र गिरि बड़ा शूर-वीर पुरुप था | अवध के नवाव वीर शुजाउद्दौला ने इन्द्र गिरि से प्रसन्न होकर उसे अपने यहाँ नौकर रख लिया । नवाव शुजाउद्दौला इंद्र गिरि का बड़ा सम्मान करता था और वह अवध के मुख्य सैनिक सरदारों में से था। इंद्र गिरि की मृत्यु विक्रम संवत् १८०९ में हुई और उसके पश्चात् उसका चेला अनूप गिरि अवध में सेना का सरदार हो गया। [बुन्देलखंड का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ २५०-१] अवध में पहुँच कर 'अनूप गिरि हिम्मतबहादुर बने और ...होते होते अंत में हुआ यह कि- हिम्मत बहादुर ने सेंधिया की नौकरी छोड़ कर अली वहादुर के यहाँ सेनापति की नौकरी कर ली थी। अलीबहादुर की मृत्यु के पश्चात् यद्यपि यह उसी के यहाँ था पर मन ही मन अपना स्वतंत्र राज्य जमाने की चिंता में लगा हुआ था। इसी समय अँगरेजों ने बुंदेलखंड के भीतर से सेना भेजने का प्रबंध किया। हिम्मतकहादुर तो यह चाहता ही था। इसने बात की बात में अलीवहादुर की नौकरी छोड़ कर शाहपुर जा कर अंगरेजों से विक्रम संवत् : १८६० (१-५-१८०३) में संधि कर ली। इसी संधि ले अंगरेजों ने इसे अपनी सहायता के अनूप गिरि