पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/५५

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स्वामी दास भगत अरू सेवक, परम तत्व नहिं चीन्हे । कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै । तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलिक ह्वै चुनि खावै ॥ ऐसी भगति न होइ रे भाई । राम नाम बिनु जो कुछ करिये, सो सब भरमु कहाई ॥ भगति न रस दान, भगति न कथै ज्ञान । भगति न बन में गुफा खुदाई ॥ भगति न ऐसी हांसी, भगति न आसा- पासी । भगति न यह सब कुल कान गंवाई ॥ भगति न इंद्री बांधा भगति न जोग साधार । भगति न अहार घटाई, ये सब करम कहाई॥ भगति न इंद्री साधे, भगति न वैराग बांधे। भगति न ये सब वेद बड़ाई ॥

भगति न मूड़ मुंड़ाए, भगति न माला दिखाये । भगति न चरन धुवाए, ये सब गुनी जन कहाई ॥ भगति न तौ लौं जाना, आपको आप बखाना । जोइ जोइ करै सो सो करम बड़ाई ॥ आपो गयो तब भगति पाई, ऐसी भगति भाई । राम मिल्यो आपो गुन खोयो, रिद्धि सिद्धि सबै गंवाई || कह रैदास छूटी आस सब, तब हरि ताही के पास। आत्म थिर भई तब सबही निधि पाई ।

भेष लिया पै भेद न जान्यो । अमृत लेइ विषै सो मान्यो ॥ काम क्रोध में जनम गंवायो । साधु संगति मिलि राम न गायो । तिलक दियो पै तपनि जाई । माला पहिरे घनेरी लाई ॥ कह रैदास मरम जो पाऊं। देव निरंजन सत कर ध्याऊं ॥ 58 / दलित मुक्ति की विरासत: संत रविदास