पृष्ठ:दासबोध.pdf/१०२

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दूसरा दशक। पहला समास-सूर्ख-लक्षण। ॥ श्रीराम ॥ एकदन्त, त्रिनयन (?) गजानन, श्रापको नमस्कार है । भक्तजनों की और यादृष्टि से देखिये ॥ १॥ वेदमाते, ब्रह्मन्नुने, श्रीशारद श्रापको नमस्कार करता । कृपाचन्ने, श्राप स्मार्तिरूप में मग अन्तःकरण में चाल करिये ॥२॥ अब सद्गुन-चरणों की वन्दना करके और रघुनाथ का स्मरण करके, त्यागने के अर्थ, मृर्व के लक्षण कहता ई ॥ ३॥ मूर्ख दो प्रकार के होते हैं: एक साधारण मन्त्र और एक पढ़े हुए मूर्ख । दोनों के लक्षणों में विचित्रता है। इन पर श्रोताओं को अच्छी तरह विचार करना चाहिए॥४॥ पड़े हुए मृग्वाँ के लक्षणों का अगलं समास में विवेचन किया गया हे बुद्धिमान् श्रोतागण, वहां पर, सावधान होकर, आगे की कया नुनो ॥ ५ ॥ अव, यदि मूखों के पूरे लक्षण यहां कदे जाँय तो बहुत हैं परन्तु उनमें से कुछ घोड़े, ध्यानपूर्वक सुनो । ६ ॥ जो प्रापंचिक जन हैं, जिन्हें श्रात्मज्ञान नहीं है और जो बिलकुल अज्ञान है उनके ये लक्षण है:-॥७॥ जिनके पेट से जन्मा उन्हींसे जो विरोध करता है, जिसने स्त्री को ही मित्र मान लिया है वह एक प्रकार का मूर्ख है ॥८॥ सब चंश भर को छोड़ कर जो स्त्री के अधीन होकर जीता है और जो उसे गुप्त बात नत- लाता है वह मूर्ख है ॥ ६ ॥ जो परस्त्री से प्रेम करता हो, ससुर के घर में रहता हो, और कन्या का कुल देखे बिना ही उससे विवाह करता हो वह भी मूर्ख है ॥ १०॥ जो समर्थ पुरुष से अहंकार करता हो और मन में उसकी बरावरी करता हो, अथवा जो सामर्थ्य के विना, सत्ता अर्थात् प्रभाव, दिखलाता हो वह मूर्ख है ॥ ११ ॥ जो अपने मुहँ अपनी प्रशंसा करता हो, स्वदेश में ही रहकर विपत्ति भोगता हो और व्यर्थ पूर्वजों की कीर्ति वर्णन करता हो वह भी मूर्ख है ॥ १२ ॥ जो व्यर्थ हँसता हो, उपदेश का ग्रहण न करता हो और बहुतों का वैरी हो वह मूर्ख है ॥१३॥ जो अपनों को छोड़ कर दूसरों से मित्रता करता हो, रात में दूसरे की बुराई करता हो वह मूर्ख है ॥ १४॥ जहां बहुत आदमी जगते हों वहां उनके बीच में जो सोता हो और दूसरे के घर में जो बहुत भोजन करता हो वह मूर्ख है ॥ १५ ॥ मान अथवा अपमान जो स्वयं प्रगट