पृष्ठ:दासबोध.pdf/१०६

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समास २] उत्तम लक्षण। करता हो वह मूर्ख है ॥ ३६ || पढ़ते समय अनर छोड़ देता हो या अपने पास से मिला देता हो; जो पुस्तक पर दृष्टि न रखता हो वह भी एक मूर्ख है ॥ ७० ॥ जो न खुद कभी पढ़ता हो न दूसरों को पढ़ने देता हो जो पुस्तक सदा बस्ते में बँधी रखता हो वह भी एक मूर्ख है ॥ ७१ ।। र ले ये सूत्रों के लक्षण हैं-इनके सुनने से चतुरता पानी है । समझदार आदमी ये लक्षण सदा मन लगाकर सुनते हैं ॥ ७२ ॥ लक्षण तो बहुत है, पर यहां ये कुछ लक्षण, त्याग करने के लिए, अपनी बुद्धि के अनुसार, बतला दिये हैं-श्रोता लोग मुझे क्षमा करें ।। ७३ ॥ उत्तम लक्षण ले लेना चाहिए, और मूर्ख-लक्षण त्याग देना चाहिये । अगले समास में उत्तम लक्षण बतलाये गये हैं ॥ ७४ ॥ दूसरा समास-उत्तम लक्षण । ॥ श्रीराम ॥ श्रोता लोग सावधान हों; अब उत्तम गुण कहता हूं, इन गुणों से सर्व- ज्ञता पाती है ॥ १ ॥ बिना पूछे रास्ता न चलना चाहिये, विना पहचाने फल न खाना माहिए, पड़ी हुई चीज एकाएक न उठाना चाहिए ॥२॥ बहुत वाद न करना चाहिए, पेट में कपट न रखना चाहिए, बिना खोज किये और कुलहीन स्त्री से विवाह न करना चाहिए ॥ ३॥ बिना पूछे बोलना न चाहिए, बिना विचारे और मर्यादा छोड़ कर चलना न चाहिये । ॥ ४॥ प्रीति विना रूठना न चाहिये, चोर से पहचान न पूछना चाहिये, रात में एकाएक रास्ता न चलना चाहिये ॥५॥ मनुष्यों से नम्रता न तोड़ना चाहिये, पापद्व्य न जोड़ना चाहिए, पुण्यमार्ग कभी न छोड़ना चाहिये ॥ ६ ॥ निन्दा और द्वेष न करना चाहिये, बुरा साथ न रखना चाहिये, परधन और परस्त्री बलात् हरण न करना चाहिये ॥ ७॥ वना को बीच में टोंकना न चाहिये, एकता को तोड़ना न चाहिये, कुछ भी हो, विद्या अभ्यास छोड़ना न चाहिये ॥८॥ मुहँजोर से लड़ना न चाहिये, । वाचाल से बहुत बातें न करना चाहिये, संत का संग छोड़ना न चाहिये ॥६॥ बहुत क्रोध न करना चाहिए, प्रेमियों को खेदित न करना चाहिये सिखाचन का मन में बुरा न मानना चाहिए ॥ १०॥ क्षण क्षण में रूठना न चाहिये, झूठे पुरुषार्थ का बखान न करना चाहिये और बिना किये अपना पराक्रम नहीं बतलाना चाहिये ॥ ११ ॥ की हुई प्रतिज्ञा मत भूलो