पृष्ठ:दासबोध.pdf/११०

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समास ३] कुविद्या लक्षण। ! वाला, नट, कोपी, कुधन और स्वच्छंद हो उसे भी कुविद्यावान् समझना चाहिये ॥ २३ ॥ जो क्रोधी, तामसी, अविचारी, पापी, अनर्थी, अपस्मार- रोगी हो और जिसके शरीर में भूत-संचार करता हो उसे कुविद्यावान् समझना चाहिए ॥२४॥ जो आत्महत्यारा, स्त्रीहत्यारा, गौ-हत्यारा ब्राह्मण- हत्यारा, माता-पिता की हत्या करनेवाला और महापापी या पतित हो यह कृविद्यावान् है ॥ २५ ॥ जो हीन, कुपात्र, कुतर्की हो; जो मित्रद्रोही और विश्वासघाती हो अथवा जो कृतघ्न, तल्पकी, अर्थात् सौतेली मा या गुरुस्त्री को भ्रष्ट करनेवाला,, और नारकी हो; आततायी और बकबक करनेवाला हो वह विद्यावान् है ॥ २६ ॥ जो विपरीत भावना करके लड़ाई झगड़ा या कलह करता हो, जो अधर्मी, अनाड़ी, शोकसंग्रही, चुगुलखोर, व्यसनी, विग्रही और हठी हो वह कुविद्यावान है ॥ २७ ।। जो दुष्ट, अपयशी, मलीन, दूसरे को भलाई न देख सकनेवाला, सूम, चीमड़ और स्वैर हो उसे कुविद्यावान् समझना चाहिये ॥ २८ ॥ जो शठ, मूर्ख, कातर, बदमाश, · लकीर का फकीर, ' ठग, फितूरी, पाखंडी, चोर और अपहार करनेवाला हो वह कुविद्यावान है ॥ २६ ॥ ढीठ, अद्वातद्वा बकनेवाला, अनर्गल बड़बड़ करनेवाला, हँसोड़ा, श्रोछा, कुभांडी, उद्धट, लंपट, भ्रष्ट और कुबुद्धी मनुप्य को भी कुविद्यावान् समझो ॥ ३०॥ मार डालनेवाला, लुटारू, डाका डालनेवाला, कलेजा खा जानेवाला, ठग, भोंदू, परस्त्री-गमन करनेवाला, भुलानेवाला, चेटकी, ये सब कुविद्यावान् हैं ॥ ३१ ॥ निःशंक, निर्लज, झगड़ालू, लण्ठ, नीच, घट-उद्धट, अर्थात् बड़ा घमंडी, निडर, अक्षरशत्रु, नटखट, लड़ाका और विकारवान् को भी कुविद्यावान् समझना चाहिये ॥ ३२ ॥ अधीर, डाह रखनेवाला, अना- चारी, अंधा, लँगड़ा, खांसीबाज, लुला, बहरा, दमबाज और इतना होने पर भी गर्व न छोड़नेवाला कुविद्यावान् है ॥ ३३ ॥ विद्याहीन, वैभवहीन, कुलहीन, लक्ष्मीहीन, शक्तिहीन, सामर्थ्यहीन, भाग्यहीन और भिखारी होना भी कुविद्या का लक्षण है ॥ ३४ ॥ बलहीन, कलाहीन, मुद्राहीन, दीक्षाहीन, लक्षणहीन, लावण्यहीन, अंगहीन और कुरूप होना भी कुविद्या का फल है ॥३५॥ युक्तिहीन, बुद्धिहीन, प्राचारहीन, विचारहीन, क्रिया होन, सत्त्वहीन, विवेकहीन और संशयी होना भी कुावेद्या के लक्षण हैं ॥३६॥ भक्तिहीन, भावहीन, ज्ञानहीन, वैराग्यहीन, शान्तिहीन, क्षमाहीन और सब से हीन या क्षुद्र होना कुविद्या के लक्षण हैं ॥ ३७ ॥ जो समय, प्रसंग, प्रयत्न, अभ्यास, बिनती, मित्रता आदि कुछ नहीं जानता और अभागी है वह कुविद्यावान् है ।। ३८ ।।